हादसों का शहर
ये शहर हादसों का शहर हो न जाए।
अमन पसंद लोगों पर कहर हो न जाए।।
न छेड़ बातें यहां राम औ रहीम की,
हिन्दू और मुसलमां में बैर हो न जाए।।
अमृत सा पानी बहे इन दरियाओं में,
आबो हवा बचाओ सब जहर हो न जाए।।
गोलियों की आवाजें सुन ही जाती हैं,
पूरी इन्सानियत ही ढेर हो न जाए।।
सूरज की पहली किरण का पैगाम है,
जल्दी उठ के सुनो दोपहर हो न जाए।।
सिल्ला’ तूं अपने विचार खुले रखना,
संकीर्णता में अपने गैर हो न जाए।।
-विनोद सिल्ला
बहुत सुन्दर रचना