जीवन तेरा बस नाम है
युद्ध है संग्राम है जीवन तेरा बस नाम है
देख मैं हैरान हूँ , तू फ़िर भी क्यों बदनाम है
तूने धारा त्याग को ,तेरी कामना निष्काम है
देख मैं हैरान हूँ , तू फ़िर भी क्यों बदनाम है
युद्ध है संग्राम है……
बनके बेटी जन्मीं थी तू , तू थी खुशियाँ तू बहार
पर पराया तुझको कह कर , तुझे दिया ग़ैरों सा प्यार
गुम हुआ अस्तित्व तेरा, ये भी क्या अंजाम है
देख मैं हैरान हूँ, तू फ़िर भी क्यों बदनाम है
युद्ध है संग्राम है…..
सात फेरों से बंधी जो हुआ पराया घर का द्वार
अपना सब कुछ सौंप कर के, चाहा था बदले में प्यार
फ़िर भी जग में त्याग तेरा क्यों हुआ नाकाम है
देख मैं हैरान हूँ , तू फ़िर भी क्यों बदनाम है
युद्ध है संग्राम है……
माँ बनी तो इस जगत ने तुझको रहबर कह दिया
माँ बहन की गालियों से मान को तेरे डह दिया
तेरे दिल में ‘चाहत’ और दुआ रहती सुबह शाम है
देख मैं हैरान हूँ, तू फ़िर भी क्यों बदनाम है
युद्ध है संग्राम है…..
नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
इस पोस्ट को like करें (function(d,e,s){if(d.getElementById(“likebtn_wjs”))return;a=d.createElement(e);m=d.getElementsByTagName(e)[0];a.async=1;a.id=”likebtn_wjs”;a.src=s;m.parentNode.insertBefore(a, m)})(document,”script”,”//w.likebtn.com/js/w/widget.js”);
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद