ईश्वर की दी धरोहर हम जला रहे हैं/मनोज कुमार

ईश्वर की दी धरोहर हम जला रहे हैं/मनोज कुमार

JALTI DHARTI

ईश्वर की दी हुई धरोहर हम जला रहे हैं
लगा के आग पर्यावरण दूषित कर रहे हैं
काटे जा रहे हैं पेड़ जंगलों के,
सुखा के इन्सान खुश हो रहा है
आते – जाते मौसम बिगाड़ रहा है

हरी- भरी भूमि में निरंतर रसायन मिला रहा है
अपने ही उपजाऊ भूमि को बंजर कर रहा है
धरती को आग लगा रहा है
जीवन बुझा रहा है।

हवाओं का रुख न रहा,
मेघ, बरखा सब बदल रहा
फसलों को अब कीट पतंगे चुनते हैं,
उसपर रेशा- रेशा बुनते हैं
अब खो गए सब वन सारे,
जब धरती पे फूटे अँगारे
अब चारों तरफ है गर्मी,
रिमझिम कहाँ है बूँदों में?

  • मनोज कुमार गोण्डा उत्तर प्रदेश

सुशी सक्सेना

यह काव्य संकलन उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में अवतरित लेखिका सुशी सक्सेना के सहयोग से हो पाई है । अभी आप इंदौर मध्यप्रदेश में हैं । अभी आप अवैतनिक संपादक और कवयित्री के रूप में kavitabahar.com में अपना सेवा दे रही है। आपकी लिखी शायरियां और कविताएं बहुत सी मैगजीन और न्यूज पेपर में प्रकाशित होती रहती हैं। मेरे सनम, जिंदगी की परिभाषा, नशा कलम का, मेरे साहिब, चाहतों की हवा आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।