पेड़ की पुकार / सुनहरी लाल वर्मा ‘तुरंत’

पेड़ की पुकार / सुनहरी लाल वर्मा ‘तुरंत’

save tree save earth

रो-रोकर एक पेड़

लकड़हारे से एक दिन बोला

क्यों काटता मुझको भैया

तू है कितना भोला !

सोच समझ फिर बता मुझे

मैं तेरा क्या लेता हूँ?

मैं तो पगले! तुझको, जग को

बहुत कुछ देता ही देता हूँ।

सूरज से प्रकाश लेकर

मैं खाना स्वयं पकाता हूँ।

धरती माँ से जल ले-लेकर

अपनी प्यास बुझाता हूँ।

पी जहरीली वायु, तुझे

मैं शुद्ध पवन देता हूँ,

शीतल छाया देकर तेरा

दुःख भी सब हर लेता हूँ।

स्वयं धूप में तपकर तेरा

ताप मिटाता रहता हूँ,

अंदर-अंदर रोता फिर भी

बाहर गाता रहता हूँ।

तेरे नन्हे-मुन्नों को निज

छाया तले झुलाता हूँ

मीठी-मीठी लोरी गाकर

अपनी गोद सुलाता हूँ।

अपने हर दुःख की औषधि

काट गिराता है मुझको ही,

तू मुझसे ही पाता है,

तू मेरा ही दिया खाता है।

वर्षा नहीं देख पाएगा

ना तू अन्न उगा पाएगा

धरती ऊसर बन जाएगी

फिर बतला तू क्या खाएगा ?

देख न पाएगा बसंत तू

बाढ़ रोक ना पाएगा।

मुझे काट देगा पगले !

तू जीते जी मर जाएगा ।

दिवस आधारित कविता