खुदा ने अता की जिन्दगी -अनिल कुमार गुप्ता अंजुम

खुदा ने अता की जिन्दगी

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खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
मुहब्बत के लिए

क्यूं कर बैठा तू दूसरों से नफरत
अपने अहम् के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
एक अदद इंसानियत के लिए

ऊंच – नीच के बवंडर में उलझ गया तू
ताउम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी
आशिक़ी के लिए

तू मुहब्बत का दुश्मन बन बैठा
ताउम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
इबादत के लिए

तू बहक गया धर्म के ठेकेदारों के कहने पर
उम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
किसी के आंसू पोंछने के लिए

तू अपनी ही मस्ती में डूबा रहा
उम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
इस गुलशन को आबाद करने के लिए

तू उजाड़ बैठा इस गुलशन को
अपने ऐशो – आराम के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
उपवन में फूल खिलाने के लिए

तू काँटों की सेज सजा बैठा
उम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
किसी जनाजे को कंधा देने के लिए

तू उसकी मौत का गुनाहगार बन बैठा
उम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
मुहब्बत के लिए

क्यूं कर बैठा तू दूसरों से नफरत
अपने अहम् के लिए

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