बाल मजदूर पर कविता (लावणी छंद मुक्तक)
बाल मजदूर पर कविता (लावणी छंद मुक्तक) राज, समाज, परायों अपनों, के कर्मो के मारे हैं!घर परिवार से हुये किनारे, फिरते मारे मारे हैं!पेट की आग बुझाने निकले, देखो तो ये दीवाने!बाल भ्रमित मजदूर बेचारे,हार हारकर नित हारे!__यह भाग्य दोष या कर्म लिखे,. ऐसी कोई बात नहीं!यह विधना की दी गई हमको,कोई नव सौगात नहीं!मानव … Read more