छत्तीसगढ़ी कविता – तरिया घाट के गोठ

( यह कविता कुछ ग्रामीण महिलाओं के स्वभाव को दर्शाती है जहाँ उनकी दिखावटीपन, आभूषण प्रियता, बातूनीपन  और  कुछ अनछुए पहलू को बताने की कोशिश की गई है ।)

छत्तीसगढ़ी कविता
छत्तीसगढ़ी कविता

तरिया घाट के गोठ – छत्तीसगढ़ी कविता

गोठ बात चलत हे,गाँव भर के मोटियारी के ।
काकर निंदा,काकर चुगली, कनहू के सुआरी के ।
सबो झन सबो ल, बात बात म दबावत हे।
खिसियावथें कनहू ल, मन म कलबलावत हे।
सबो हावे अपन आप म रोंठ ।
ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥ 1

माईलोगिन के भेद हर,तरिया घाट म खुलथें।
इक कान ले दूसर कान म, ओ भेद हर बुलथें।
“सोशल मीडिया” कस रोल म, होथें तरिया घाट ।
“कन्टरवरसी” होवत हे,कोनो ल कोनो संग करके साँठ।
काकर जोही सांवर हे, काकरो हावे मोंठ।
ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥2

काकर घेंच म कतका तोला, काकर माला हे कै लरी।
काकर घर म मछरी चूरे, कोने दिन पहाये खाके बरी ।
काकर लुगरा कतक दाम के,अऊ कती दुकान के चूरी ।
कोनो मंदरस घोल गोठियाये, काकरो गोठ लागे छुरी ।
नवा बोहासिन कलेचाप सुनथे,ओकर सास करथे चोट ।
ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ ॥3

धोबिनिन कस सबो महतारी,निरमा ल डाल के।
कपड़ा कांचे गोठ करत,पानी ल बने मताल के।
गां के लबर्री के गोठ म जम्मो झन भुला गय हे।
लागथे ओकर समधिन तको,तरिया नहाय आय हे।
अब्बक होके सुने बपरी,समझें मोर समधिन हावे पोट।
ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥ 4

-मनीभाई नवरत्न

manibhainavratna
manibhai navratna

( यह कविता कुछ ग्रामीण महिलाओं के स्वभाव को दर्शाती है जहाँ उनकी दिखावटीपन, आभूषण प्रियता, बातूनीपन और कुछ अनछुए पहलू को बताने की कोशिश की गई है ।)

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