ओ नारी- मनीभाई नवरत्न
जिन्दगी चले ना, बिन तेरे ओ नारी!
उठा ली तूने, सिर अपने ऐसी जिम्मेदारी ।
मर्दों ने नाहक किये खुद पे ऐतबार ।
सच तो यह है कि नारी होती जग की श्रृंगार ।
महक ऐसे , फूल जैसे खिल उठे क्यारी क्यारी ।
रोशन होता रहे तेरा जी, फैले ज्ञान की चिनगारी ।।
संयमित रह, सुशोभित रह
तुझे ईश्वरीय वरदान है ।
घर बनाती हरेक मकान को।
तेरे साये में, तेरा परिवार है।
समाज की बीड़ा उठाने को तोड़ चली चारदीवारी ।
रोशन होता रहे तेरा जी, फैले ज्ञान की चिनगारी ।।
नारी! तू चीज नहीं कोई उपभोग की ।
तुमसे टिकी है मर्यादा आज भी लोग की ।
ना बढ़े तेरे कदम उस ओर पे
जिस पथ पर आधुनिकता है ढोंग की।
तेरे एक गलत के फिराक में है यहाँ कई शिकारी ।
रोशन होता रहे तेरा जी, फैले ज्ञान की चिनगारी ।।