विज्ञ छंद
~मापनी- २२१ २२२, १२२ १२२ २२ वाचिक
आशंका
यह गर्म लू चलती, भयानक तपिश घर बाहर।
कुछ मित्र भी कहते,अचानक नगर की आकर।
आकाश रोता रवि, धरा शशि विकल हर माता।
यह रोग कोरोना, पराजित मनुज थक गाता।
पितु मात छीने है, किसी घर तनय बहु बेटी।
यह मौत का साया, निँगलता मनुज आखेटी।
मजदूर भूखे घर, निठल्ले स्वजन जन सारे।
बीमार जन शासन, चिकित्सक पड़े मन हारे।
तन साँस सी घुटती, सुने जब खबर मौतों की।
मन फाँस बन चुभती, पराए सुजन गोतों की।
नाते हुए थोथे, विगत सब रहन ब्याजों के।
ताले जड़े मुख पर, लगे घर विहग बाजों के।
.
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान