विधाता छंद मय मुक्तक- फूल

विधाता छंद मय मुक्तक- फूल

छंद
छंद

रखूँ किस पृष्ठ के अंदर,
अमानत प्यार की सँभले।
भरी है डायरी पूरी,
सहे जज्बात के हमले।
गुलाबी फूल सा दिल है,
तुम्हारे प्यार में पागल।
सहे ना फूल भी दिल भी,
हकीकत हैं, नहीं जुमले।
.
सुखों की खोज में मैने,
लिखे हैं गीत अफसाने।
रचे हैं छंद भी सुंदर,
भरोसे वक्त बहकाने।
मिला इक फूल जीवन में,
तुम्हारे हाथ से केवल।
रखूँगा डायरी में ही,
कभी दिल ज़ान भरमाने।
.
कभी सावन हमेशा ही,
दिलों मे फाग था हरदम।
सुनहली चाँदनी रातें,
बिताते याद मे हमदम।
जमाना वो गया लेकिन,
चला यह वक्त जाएगा।
पढेंगे डायरी गुम सुम,
रखेंगे फूल मरते दम।
.
गुलाबी फूल सूखेगा,
चिपक छंदो से जाएगा।
गुमानी छंद भी महके,
पुहुप भी गीत गाएगा।
हमारे दिल मिलेंगे यों,
यही है प्यार का मकस़द,
अमानत यह विरासत सा
सदा ही याद आएगा।
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बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

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