प्रतीक्षा पर कविता
आयु ही जैसे प्रतीक्षा-श्रृंखला है,
हर प्रतीक्षा पूर्ण कब होती भला है!
रवि प्रतीक्षित धर्मरत हैं पूर्व-पश्चिम,
सूर्य मिलकर पूर्व से पश्चिम चला है।
धैर्य से जिस बीज ने की है प्रतीक्षा,
वृक्ष सुंदर हो वही फूला-फला है।
झूठ है आलस्य को कहना प्रतीक्षा,
उन्नयन के मार्ग पर यह तो बला है।
व्यग्रता को त्याग,धीरज को जगा ले,
साधना का दीप इससे ही जला है।
रेखराम साहू