बस एक पेड़ ही तो काटा है -नदीम सिद्दीकी

बस एक पेड़ ही तो काटा है

poem on trees
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बस एक पेड़ ही तो उखाड़ा है साहब!
अगर ऐसा न हो तो बस्तियां कैसे बसेगी?
प्रगति,तरक्की,ख़ुशयाली कैसे आएगी?


हमें आगे चलना है,पीछे नहीं रहना है,
दुनिया के साथ चलकर आगे बढ़ना है।
आगे बढ़ने की रफ्तार सही नहीं जाती,
तुमसे इंसान की तरक्की देखी नहीं जाती।
ये कैसी तरक्की है साहब?


तुमने कभी पेड़ से भी पूछा है तनिक,
कभी उसके दर्द,उसके आँसुओं को समझा।
वो कितना ख्याल रखता है हमारे सबका,
प्रकृति का संतुलन,हमारा जीवन दाता।


इंसान और प्रकृति का अनूठा संगम है वो,
बारिश को बुलाना,धरा को हरीभरी करना।
प्रदूषण को दूर करना,मानव का पेट भरना,
कितनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है।


एक पेड़ कितने जीवन को बचाता है,
कितनो को वो प्राण वायु देता है।
क्या ये तरक्की नहीं,क्या ये प्रगति नहीं मानुष,
पेड़ पौधे नहीं होंगे,प्रकृति का विनाश होगा।


इसके बिना इंसान का अस्तित्व खतरे में होगा,
इसके बिना प्रकृति समूल नष्ट हो जाएगी।
क्या मानव ऐसी तरक्की करना चाहता है?
जहां उसका सब कुछ दांव पर लगा हो,
उसका अस्तित्व ही बचने वाला ना हो।
कैसी तरक्की?
बस एक पेड़ ही तो काटा है!


नदीम सिद्दीकी, राजस्थान

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