महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते हैं। व्यास जी ने उस युग में इन पवित्र वेदों की रचना की जब शिक्षा के नाम पर देश शून्य ही था। गुरु के रूप में उन्होंने संसार को जो ज्ञान दिया वह दिव्य है। उन्होंने ही वेदों का ‘ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद’ के रूप में विधिवत् वर्गीकरण किया। ये वेद हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं
गुरू का गुणगान
गुरू की महिमा है अपार,
गुरू से हम गुरु से संसार।
गुरू है ज्ञान का भंडार,
गुरू सिखलाए उपकार।
शिष्य के लिए गुरू है सारा जहाँ,
मैं हर- पल करूँ, गुरू का गुणगान।
मुश्किलों में काम आए गुरू का ज्ञान,
धन्य है गुरू हमको दिया शिक्षा – दान।
करूँ मैं सेवा गुरू का नित,
मिले हर-पल जीवन में जीत।
गुरू के आशिर्वाद से मिला पहचान,
मैं हर-पल करूँ, गुरू का गुणगान।
निःस्वार्थ भाव से करूँ गुरू की पुजा,
मन में रहे है गुरू और न कोई दूजा।
अच्छाई – बुराई का दे हमें शिक्षा,
मनन से करें हम उचित समीक्षा।
दोस्तों गुरू मिले जिसे वो है भाग्यवान,
मैं हर – पल करूँ, गुरू का गुणगान।
गुरू सिखाते अहिंसा का करो चयन,
पर-सम्मान में शुद्ध करो नयन।
क्रोध – घमंड को करो दूर,
बनके ज्ञानी न करो गुरूर।
कोई बना रंक तो कोई है सुल्तान,
मैं हर-पल करूँ, गुरू का गुणगान।
—- अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.