गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।
गणेश विदाई गीत – डी कुमार-अजस्र
मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
गणपति की भक्ति में मगन हो के ।
झांकी है मनुहार , करे मेरा दिल पुकार ।
रह जाऊँ इनमें ही आज खो के …..
मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
गणपति की भक्ति में मगन हो के ।
डी जे (D J ) का होवे शोर ,देखो-देखो चहुँओर ।
कह दो ये दुनियां से कोई न रोके …..
मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
गणपति की भक्ति में मगन हो के ।
कर के सब का उद्धार,दे के सबको अपना प्यार ।
देते हैं आशीष ये खुश हो के …..
मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
गणपति की भक्ति में मगन हो के ।
आएंगे अगली बार ,वादा करते बार बार ।
जाते है गजानन अब विदा हो के ……
मूषक सवार हो के चले हैं गजानन ,
आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले,
गणपति की भक्ति में मगन हो के ।
मूषक सवार हो के …..
डी कुमार-अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)