आस्था
धूम मची है,
जय माता की…
मंदिरों, पंडालों में,
लगी है भीड़ भक्तों की..
क्या यही है “आस्था “?
मन सशंकित है मेरा,
वृद्धाश्रम में दिखती माताएँ…
जो जनती हैं एक “वजूद”
रचती हैं सृष्टि…
थक जाती हैं तब,
निकाल दी जाती हैं,
एक अनंत अंधकार की ओर…
कन्या भोजन,
भंडारे का आयोजन!!
पूजी जाती कन्याएं…
मन दुखी है मेरा…
निरभया कांड, कठुवा,
देवरिया, मुजफ्फरपुर….
जहाँ रौंदी जाती कन्याएँ..
कुछ छपी, कुछ छुपी,,
रह जाती घटनाएँ!!
क्या ये कन्या वो नहीं?
जो पूजी जाती हैं????
आज डांवाडोल है
” आस्था”
शशि मित्तल “अमर”
बतौली,सरगुजा (छत्तीसगढ़)