कोई रावण बच ना पाए

कोई रावण बच ना पाए

फिर  से  नारे   गूंजेंगे   फिर   तख्तियां    उठाई    जाएंगी
नम आंखों  के  आंसू  से  फिर  से  मोम  जलाई  जाएंगी
फिर   धरना   प्रदर्शन   होगा   गांव   गली   चौराहों   पर
फिर  से  होगा   ख़ूब   ड्रामा   संसद   के    दोराहों    पर
श्वेत  लुटेरे  आ   कर   के   फिर   अपने    पासे    फेंकेंगे
धर्म   मज़हब    का   चोला   ओढ़े   अपनी  रोटी  सेंकेंगे
सब मिल कर  ट्विंकल  की  तस्वीरों  पे  शीश  झुकाएंगे
अपनी    मैली    श्रद्धा    के    सूखे     सुमन     चढ़ाएंगे
फिर  से  खून  दिखेगा  हर  भारतवासी  की  आंखों   में
फ़िर से चिड़िया दब मर जाएगी ख़ुद अपनी ही पाँखों में
इनके   काले   कुकर्मों   पर   पर्दा   कब   तक   डालोगे
इनकी  हैवानी  हरकत  को  आख़िर  कब  तक  टालोगे
इन  ग़द्दारों  के  नामों  को   आख़िर   कब   तक   रोएंगे
इन  धरती  के  बोझों  को  आख़िर   कब   तक   ढोएंगे
कानून बना कर शैतानों  को  अब  तोपों  से  भुनवा  दो
शीश  उठाए  गर  रावण   तो   दीवारों   में   चुनवा   दो
इनकी   काली   करतूतों  का  खुल  के  उत्तर  देंगे  हम
सीने   के   अंदर   तक    अब    के   पीतल   भर   देंगे
श्री  राम   बन   कर   उतरो   सीता    के   सम्मान   में
कोई   रावण   बच   ना    पाए    मेरे    हिंदुस्तान    में
कोई रावण बच ना पाए…

कवि धीरज कुमार पचवारिया

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