मातृ भाषा पर कविता – विनोद कुमार चौहान

हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

मातृ भाषा पर कविता



देख रहा है बिनोद,
मातृभाषा की क्या दुर्दशा है?
खुद तो बोलने को कतराते हैं,
और विश्व भाषा बनाने की मंशा है।

देख रहा है बिनोद,
फर्राटेदार अंग्रेजी को शान समझते हैं।
जो हिन्दी का ज्ञान रखता है,
उसे अनपढ़, गंवार, नादान समझते हैं।

देख रहा है बिनोद,
हिन्दी की औचित्यता इतनी सी रह गई है।
कभी जो सबके जुबां की मातृभाषा हुआ करती थी,
अब तो मात्र भाषा बन कर रह गई है।

देख रहा है बिनोद,
माना विश्व पटल पर अंग्रेजी जरूरी है।
पर हिन्दी हमारी शान है,
पूरे हिंदुस्तान को केन्द्रित करती धुरी है।

विनोद कुमार चौहान “जोगी”
जोगीडीपा, सरायपाली

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