मुहम्मद आसिफ अली के नज़्म

मुहम्मद आसिफ अली के नज़्म

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अगर है प्यार मुझसे तो बताना भी ज़रूरी है

अगर है प्यार मुझसे तो बताना भी ज़रूरी है
दिया है हुस्न मौला ने दिखाना भी ज़रूरी है

इशारा तो करो मुझको कभी अपनी निगाहों से
अगर है इश्क़ मुझसे तो जताना भी ज़रूरी है

अगर कर ले सभी ये काम झगड़ा हो नहीं सकता
ख़ता कोई नज़र आए छुपाना भी ज़रूरी है

अगर टूटे कभी रिश्ता तुम्हारी हरकतों से जब
पड़े कदमों में जाकर फिर मनाना भी ज़रूरी है

कभी मज़लूम आ जाए तुम्हारे सामने तो फिर
उसे अब पेट भर कर के खिलाना भी ज़रूरी है

अगर रोता नज़र आए कभी मस्जिद या मंदिर में
बड़े ही प्यार से उसको हँसाना भी ज़रूरी है

किसी का ग़म उठाना हाँ चुनौती है

Bahr – 1222 1222 1222

किसी का ग़म उठाना हाँ चुनौती है

किसी को अब हँसाना हाँ चुनौती है

अड़ा है इस सज़ा के सामने सच भी

मगर हरकत बताना हाँ चुनौती है

तू ने बेची हज़ारों ज़िंदगी हो पर

तुझे झूठा फँसाना हाँ चुनौती है

सर-ए-बाज़ार तुझको मैं झुकाऊँगा

यहाँ तुझको झुकाना हाँ चुनौती है

नज़र से तो तेरी कोई बचा ही क्या

यहाँ कुछ भी छिपाना हाँ चुनौती है

अना तेरी यहाँ सब को सजा देगी

तेरी आदत हटाना हाँ चुनौती है

बता क्या क्या सभी को बोलना है अब

वहाँ उनको बताना हाँ चुनौती है

बुना है ख़ुद पिटारा साँप का उसने

नशा उसका मिटाना हाँ चुनौती है

कि तेरे सामने ‘आसिफ़’ ज़माना है

यहाँ उसको सताना हाँ चुनौती है

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हाल है दिल का जो क्या बताएँ तुझे

Bahr – 212 212 212 212

हाल है दिल का जो क्या बताएँ तुझे

शाम में भी फ़ना की तरह हम जिए

आज रुख़्सत तिरे साथ की रात है

चल पड़े आज तन्हा फ़ज़ा हम लिए

दूर होने लगा ये नशा और भी

चल पड़े आज ख़्वाब-ए-सहर हम लिए

रास्ता हो यहाँ और साहिल वहाँ

फिर चलेंगे रवा में असर हम लिए

बात करने जहाँ आज ‘आसिफ़’ मिले

हाल लेकर चले कुछ पहर हम लिए

वफ़ा का बिल चुकाना भी नहीं आता 

Bahr – 1222 1222 1222

वफ़ा का बिल चुकाना भी नहीं आता

ख़फ़ा से दिल लगाना भी नहीं आता

दिया था घाव तूने ख़ास जिस दिल पर

निशाँ उसका दिखाना भी नहीं आता

मकाँ अच्छा नहीं था पर बना मेरा

ज़माने को भगाना भी नहीं आता

मिला कैसे तुझे हर फ़न बता मुझको

मुझसे सुनना सुनाना भी नहीं आता

ज़मीं पर बैठकर अच्छा हँसाते थे

मगर अब ग़म उठाना भी नहीं आता

बदलते आज की ख़ातिर बदलते हम

सदी में सन बढ़ाना भी नहीं आता

जिसे तुम क़त्ल करने रोज जाते हो

हमें उसको बचाना भी नहीं आता

ख़िज़ाँ के ज़ख़्म भरते भी नहीं जल्दी

हमें मरहम लगाना भी नहीं आता

किसे हमको बचाना है बता दो तुम

दवा सबको खिलाना भी नहीं आता

किनारे पे समंदर के रवाँ लहरें

बिखरता दिल उठाना भी नहीं आता

सदाएँ गूँजती आमान में तेरी

हमें क़िस्सा सुनाना भी नहीं आता

बता ‘आसिफ़’ हमारी शायरी का तुक

लिखा मक़्ता’ मिटाना भी नहीं आता

ज़िन्दगी से मुझे गिला ही नहीं

Bahr – 2122 1212 22 (112)

ज़िन्दगी से मुझे गिला ही नहीं

रोग ऐसा लगा दवा ही नहीं

क्या करूँ ज़िन्दगी का बिन तेरे

साँस लेने में अब मज़ा ही नहीं

दोष भँवरों पे सब लगाएंँगें

फूल गुलशन में जब खिला ही नहीं

कौन किसको मिले ख़ुदा जाने

मेरा होकर भी तू मिला ही नहीं

मेरी आँखों में एक दरिया था

तेरे जाने पे वो रुका ही नहीं

यूँ मोहब्बत में निखरता है कहाँ दीवाना

Bahr – 2122 2122 2122 22

यूँ मोहब्बत में निखरता है कहाँ दीवाना

शख़्स हर कोई वफ़ा पाकर बिखर जाता है

तुम आवाज़ हो मेरी इक संसार हो मेरा 

Bahr – 222 1222 222 1222

तुम आवाज़ हो मेरी इक संसार हो मेरा

मैं भटका परिंदा हूँ तुम हंजार हो मेरा

दिल हमारा आपका जब हो गया

Bahr – 2122 2122 212

दिल हमारा आपका जब हो गया

कोना-कोना बाग सा तब हो गया

पंछियों से दोस्ती होने लगी

सोचते हैं, मन गगन कब हो गया

ख़्वाब को साथ मिलकर सजाने लगे

Bahr – 212 212 212 212

ख़्वाब को साथ मिलकर सजाने लगे
घर कहीं इस तरह हम बसाने लगे

कर दिया है ख़फ़ा इस तरह से हमें
मान हम थे गए फिर मनाने लगे

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