दीपक हो उदास-माधवी गणवीर

दीपक हो उदास

गर दीपक हो उदास 
तो दीप कैसे जलाऊ……
उन्यासी बरस की आजादी का
क्या हाल हुआ 
उनकी बर्बादी का,
सत्ता के लुटेरे देखे,
बेरोजगारी की बार झेले
भष्ट्राचारी, लाचारी,
भुखमरी का,
क्या अब राग सुनाऊ…..
दीप कैसे जलाऊ।
अपने ही करते आए
अपनो पर आहत,
लाख करू जतन 
मिलती नही राहत
कैसे बचेगा देश विभीषणों 
की चाल से,
बच जायेंगे दुश्मनों से,
पर क्या बचेंगे जयचंदो की चाल से।
कपटी, बेईमानो,
धोखेबाजो को कैसे
पार लगाऊ……
दीप कैसे जलाऊ……..
पर…. टूटी मन की आश नही
खोया मन का विश्वास नही
नव प्रभात, नव पल्लव का
चन्द्रोदय हम खिलाएंगे,
होगा नूतन फिर उजियारा,
भागेंगा कपटी अंधियारा,
छल, कपट और राग द्वेष
दूर हो ऐसी अलख जगाऊँ
फिर मैं दीप जलाऊ।

माधवी गणवीर
राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षिका
राजनादगांव
Mo n.7999795542
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

You might also like