नायक श्री गांधी की जय
स्वतंत्रता के वीर सिपाही,
नायक श्री गांधी की जय।
अनुकरणीय कृत्य उन्नायक,
जय-जय गांधी,भव्य विजय।
पूज्य प्रेरणास्रोत महात्मा,
तुम्हें याद हम करते हैं।
दिव्य-मार्ग दे दिया निराला,
चलकर पार उतरते हैं।
सुदृढ़ जिन्दगी जीकर तुमने,
स्वर्णिम राह दिखाई है,
‘रघुपति राघव’ गाते है हम,
उच्च-शिखर पर चढ़ते हैं।
नय के पालक मोहन-गांधी,
आप कर गये दूर अनय।
वर्ष अठारह सौ उनहत्तर,
दो अक्टूबर पावन है।
याद रहेगा जन्मदिवस यह,
बापू जी का वन्दन है।
करमचन्द – पुतलीबाई थे,
पूज्य पिता – माता दोनों,
शहर पवित्र पोरबन्दर,
गुजरातभूमि अभिनंदन है।
सत्य-उदारभाव के पोषक,
लड़े,किया सब राष्ट्र अभय।
हरिश्चन्द्र से, भक्त-श्रवण से,
सत्य, पितृ – सेवा सीखी।
राजनीति के परम पुजारी,
नीति नरम, गहरी – तीखी।
अंग्रेजों को मार भगाया,
कर आन्दोलन संचालित,
रंगभेद की छुआछूत की,
कुटिल – कुरीति हटी रूखी।
सत्य-अहिंसा, ब्रह्मचर्य-व्रत,
सिखलाया सद्गुण-संचय।
वस्तु-स्वदेशी निर्मित करना,
चरखा – तकली संचालन।
उच्च बहुत गांधी की शिक्षा,
नीति-नियम का अनुपालन।
तीसजनवरी अड़तालिस को,
बिड़ला – मंदिर दिल्ली में,
दुखद हुई बापू की हत्या,
हुआ देशभर में क्रन्दन।
“नाथू : शर्म – शर्म” है नारा,
राष्ट्रपिता – गांधी अक्षय।
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● डॉ शेषपालसिंह ‘शेष’