तुममें राम कौन है?
मैदान खुला है,
भीड़ बहुत है,
जोर-जोर के जयकारे
चीर रहे है आस्मां,
दहन है विद्वान का
मूर्खों के हाथों,
सजा बार-बार क्यूं ?
सवाल मन को खंगोलता है।
मेरा कसूर क्या
बहन की इज्जत रक्षा बस?
आज जरूरत है
हर घर में,
मुझ जैसे रावण की
लड़े जो अपनी बहन खातिर
हैवानों से।
जलाओ,
जी भर के जलाओ,
मगर इतना बताओ
इस लबालब भीड़ में
तुममें कौन राम है?
खुले घुमते रावण,
सैंकड़ों रावण,
मैं एक था
मैंने छुआ नहीं था,
तुम नौंच डालते हो,
बताओ तुम राम हो या रावण?
मुझ को फूंकने से पहले
आग लगा लो खुद को,
मुझे दु:ख मुझ मरे रावण का नहीं
तुम जिन्दा रावणों का है,
एक बार फिर
जरा जोर डालो दिमाग पर
बताओ
तुममें राम कौन है?
सब के सब रावण हो तुम,
बहुत बड़े रावण।।
✍ राहुल लोहट
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद