अनुराग राम का पाने को/ हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश;
अनुराग राम का पाने को,
उर पावन सहज प्रफुल्लित है।
कण-कण में उल्लास भरा,
जन -जीवन अति आनन्दित है।टेक।
बर्बरता की धुली कालिमा,
सपनों के अंकुर फूटे,
स्वच्छ विचारों के प्रहार से,
दुर्दिन के मानक टूटे।
नाच रहीं खुशियॉ अम्बर में,
पुण्य धरा उत्सर्गित है।
अनुराग राम का पाने को,
उर पावन सहज प्रफुल्लित है।1।
बलिदान दिया निज का जिसने,
तोड़ दिया जग-बन्धन को,
कट गये शीश प्रभु चरण हेतु,
नमन अवध के चन्दन को।
मोक्षदायिनी सरयू की,
कल-कल धार तरंगित है।
अनुराग राम का पाने को,
उर पावन सहज प्रफुल्लित है।2।
धर्म-ध्वजा फिर से लहराये,
जन-जन स्नेह असीमित हो,
सुख-समृद्धि के ताने-बाने,
मंजुल सृजन सुशोभित हो।
जब जाग गया सोया पौरुष,
देखो विश्व अचम्भित है।
अनुराग राम का पाने को,
उर पावन सहज प्रफुल्लित है।3।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश;