अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रचना/सुशी सक्सेना
नारी की गौरव गाथा/सुशी सक्सेना
प्रसिद्ध बड़ी है जग में, नारी की गौरव गाथा है।
हर रूप में प्यार हमें देती है, ये हमारी माता है।
अपनी भारत माता पर, मुझे है अभिमान बहुत
शहीदों ने दिए हैं, इसकी रक्षा में बलिदान बहुत
माता के पावन चरणों में शीश चढ़ाना सौभाग्य है
चारों ओर हम गाएंगे, अब इसकी गौरव गाथा है।
रूप अद्भुत प्रकृति का, लीला भी इसकी न्यारी है
कहीं उड़ती धूल धरा पर, कहीं छाई हरियाली है
मां की तरह करती प्यार, सब कुछ देती जाती है
जीवन को सरल बनाती, ये प्रकृति हमारी माता है।
देती है जन्म वो, इसलिए जननी मां कहलाती है
उसकी छाया में पलता जीवन, सब कुछ सह जाती है
मां बिना जीवन का, कोई न अस्तित्व होता है
मां तो मां होती है, बस इक यही तो सच्चा नाता है।
गंगा माता की ये धारा, पवित्र बड़ी होती है
कष्ट कर देती है दूर, पाप लोगों के हरती है
उतर कर धरती पर, गंगा ने धरती को प्यार दिया
दुख नाशिनी, पाप नाशिनी होती ये गंगा माता है।
मां की सेवा धर्म हमारा, चरणों में इसके जन्नत है
मां ही रखती ख्याल हमारा, आंचल में उन्नत है
रौद्र रूप धारण करती है, जब होता अत्याचार है
बन जाती है नारियों की ताकत, ये शक्ति माता है।
सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश