स्वप्नों के पार -मनीभाई नवरत्न

स्वप्नों के पार

स्वप्नों के पार -मनीभाई नवरत्न

सपनों की इस बगिया में, छिपा है एक रहस्य,
नयन मूँदते ही खुलता, अंतरतम का दर्पण विशेष्य।
जहाँ न कोई सीमा होती, न बंधन का नाम,
केवल भाव बहते रहते, अंतर्मन की ध्वनि संग्राम।।

चेतन की सीमाओं से, जब मन आगे जाए,
अवचेतन की गहराई में, नयी दुनिया दिख जाए।
वहाँ दबे हुए स्वप्नों का, होता है संवाद,
जो नहीं कह पाए जीवन में, वो करते हैं प्रतिवाद।।

फ्रायड ने जो देखा था, वही गूंजता आज,
हर स्वप्न में छिपा हुआ है, कोई भूला साज।
वो इच्छाएँ, वो डर सभी, जो हमने छुपा लिए,
रातों के अंधकार में, फिर से उजाले लिए।।

नहीं है स्वप्न बस छाया, नहीं है भ्रम का जाल,
वो तो आत्मा का संगीत हैं, भीतर की हर चाल।
जब भीतर का पशु बोले, जब भीतर का ऋषि,
दोनों को पहचानो तुम, वही जीवन की दृष्टि।।

जाग्रत मन के कर्मों में, दिखता है आधार,
कैसे चल रहा जीवन, कैसा है व्यवहार।
यदि भीतर शांति चाहिए, तो स्वप्नों को समझो,
दबी हुई हर पुकार को, खुलकर जरा कहो।।

न भागो तुम अपने मन से, न रोको वह भाव,
जहाँ स्वीकृति होगी पूरी, वहीं मिलेगा चाव।
हर सपना एक संदेश है, हर डर एक द्वार,
जो खोले आत्मा का पट, ले जाए उस पार।।


“स्वप्न से सत्य की ओर,
मन की गहराइयों में भोर।”

  • मनीभाई नवरत्न