चेतना आधारित कविता
वह चेतन निर्द्वन्द है अद्भुत निर्विकार है
सारे विकार मनजनित कल्पित संस्कार है ।
आत्म सत्ता है सर्वोपरि बोधक है सदगुरु ,
भ्रम भेद भय भटकाता अतुल भवभार है ।
जो है अजर जो है अमर सर्वदा त्रयकाल है ,
इस जीव जगत का सर्वत्र मात्र एक दातार है।
संयोग वियोग दुख सुख से है परे प्राणधन ,
जग विचित्र लगता पर वो अदृश्य अपार है ।
भटकाव भरी क्षणभंगुरता यद्यपि दृष्टि मे हैें ,
सबको देता आकार जो जग में निराकार है ।
~रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह
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