प्यार तुम ही से करता हूँ – कृष्ण सैनी
विरह को पीकर में,
आज इक इंसाफ करता हु।
प्यार तुम ही से करता था,
प्यार तुम ही से करता हु।
सोचा इत्तला कर दूं,
अब भी तुझपे ही मरता हु।
प्यार तुम ही से करता था,
प्यार तुम ही से करता हूँ।
मेरी कोशिश थी बस इतनी,
कभी बदनाम ना हो तु।
की थी रब से दुआ मैंने,
कभी नाकाम ना हो तु।
जुदा तुझसे हुआ था तब,
मैं आहें अब भी भरता हूँ।
प्यार तुम ही से करता था,
प्यार तुम ही से करता हूँ।
मुझे इस दिल को समझाना,
अब आसान नहीं लगता।
तुझपर कुर्बान होना भी,
इसे नुकसान नहीं लगता।
कहीं पड़ जाए ना खलल,
तेरी खुशियों में डरता हूँ।
प्यार तुम ही से करता था,
प्यार तुम ही से करता हूँ।
दावेदारी नहीं रही तुझपर,
कोई हक़ जताने की।
ना है बाकी कोई बाते,
रूठने औऱ मनाने की।
फैसले फासलों के कर,
मैं घुट-घुट के मरता हूँ।
प्यार तुम ही से करता था,
प्यार तुम ही से करता हूँ।
✍कवि कृष्ण सैनी
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