सच्चा प्रेम वही
प्रेम करो निस्वार्थ भाव से
स्वार्थ प्रेम नही है।
त्याग और विश्वास जहाँ हो
सच्चा प्रेम वही है।।
बिना प्रेम के ये जीवन ही
लगता सूना सूना ।
प्रेम होय यदि जीवन में तो
विश्वास बढे दूना।।
ईश्वर की स्वाभाविक कृति है
प्रेम कृत्रिम नही है।
प्रेम में होती उन्मुक्तता
स्वच्छन्दता नही है।।
प्रेम बस देना जानता है
नाम नहीं लेने का।
आकंठ डूब जाता जिसमे,
नाम नही खोने का।।
इंसानियत की नई राहे ,
प्रेम ही दिखाता है।
अहंभाव से ऊपर उठना
प्रेम ही सिखाता है।।
जुबां खामोश हो जाती है,
नजर से बयां होता।
प्रेम इक पावन अहसास है
मन से मन का होता।।
प्रेम सुवासित करता मन को,
जीवन सफल बनाता।
सृष्टि के कण कण में सुशोभित
होकर ये महकाता।।
सहज और निर्विकार प्रेम
प्रेरित ये करता है।
लौकिक नही अलौकिक है ये
देने से बढ़ता है।।
जड़ व चेतन सब जगह व्याप्त
नही प्रेम की भाषा।
तोड़े नही जोड़ता है ये
देता यही दिलासा।।
प्रेम का पात्र वह होता है
जिसकी ना अभिलाषा।
बदले में माँगे ना कुछ भी
ना हो कोई आशा।।