रजनी पर कविता- डा. नीलम की कविता

रजनी पर कविता

तारा- जड़ित ओढ़े ओढ़नी
धीरे धीरे चाँदनी की नदी में

ऐसे उतर रही
जैसे कोई सद्य ब्याहता
ओढ़ चुनरिया सजना की
साजन की गलियों में
धीमे धीमे पग रखती
ससुराल की दहलीज़ चली

खामोशी में झिंगूरों की

झिमिर झिमिर का संगीत
कानों में यूं रस घोले
जैसे दुल्हनिया के बिछुए-
पायल के घूंघर रुनझुन-
रुनझुन पिया के हिय में
प्रेम- रस घोले ।

है सम्मोहिनी सारा आलम
ज्यूं मधुयामिनी की रातों में
दो नयन इक दूजे में खोये- खोये

मदहोश नशे में चूर हुए।

डा. नीलम

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