कर्म पर दोहे -डॉ एन के सेठी
भाग्य कर्म के बीच में , भाग्य बड़ा या कर्म।
कर्म बनाता भाग्य को,यही मनुज का धर्म।।
कर्म करे तो फल मिले,कर्म न निष्फल होय।
कर्महीन जो ना करे ,जीवन का फल खोय।।
कर्मगति है बड़ी गहन , इसे न समझे कोय।
जो समझे सत्कर्म को, निष्कामी वह होय।।
कर्म बिना इस सृष्टि में , होवे न व्यवहार।
इससे चलती सृष्टि भी,जो सबका आधार।।
कर्मअकर्म विकर्म को,समझे जो जीवात्म।
बन जाता निष्काम वह,पा लेता परमात्म।।
©डॉ एन के सेठी
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