जलियांवाला बाग की याद में कविता

जलियांवाला बाग के अमर शहीदों को सलाम।
अमर कुर्बानी का पावन अमृतसर शुभ धाम।।
तड़ातड़ चली थी निहत्थों पर अनगिनत गोलियां।
कसूर था बस बोल रहे थे इंकलाब की बोलियाँ।।
जनरल डायर की बर्बरता की चली थी अंधाधुंध गोलियां।
महिलाओं बच्चों पर खेली गई खून की होलियां।।
निर्दयी जनरल डायर को तनिक भी दया नहीं आया था।
माँ,बच्चे,बूढ़ों की शव से कुआँ को पटवाया था।।
क्रूरता,बर्बरता की चीख पुकार क्रंदन सुनाई देती है।
दीवार आज भी खून से लहूलुहान दिखाई देती है।।
शांतिपूर्ण सभा को जनरल डायर ने बना दिया दुःखद विवाद।
उन अमर बलिदानियों की कहानी सर्वदा रहेगी याद।।
बैशाखी का पर्व उल्लास का उसे बना दिया विषाद।
जलियांवाला बाग की निशानी हमेशा रहेगी आबाद।।
*सुन्दर लाल डडसेना”मधुर“*
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