स्त्री पर कविता
जीवन भर
चुपचाप
सहती है
उलाहनों के पत्थर
और
देती है
आशीषों की छाँह
बड़ी आसानी से
काटो तो कट जाती है
जलाओ तो जल जाती है
आपके हितों के लिए
ईंधन की तरह
पेड़ होती है स्त्री।
— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479
जीवन भर
चुपचाप
सहती है
उलाहनों के पत्थर
और
देती है
आशीषों की छाँह
बड़ी आसानी से
काटो तो कट जाती है
जलाओ तो जल जाती है
आपके हितों के लिए
ईंधन की तरह
पेड़ होती है स्त्री।
— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479