आधुनिक शिक्षा पर कविता

आधुनिक शिक्षा पर कविता
                           

 सिसक-सिसक कर रोती है बचपन ! 
 आधुनिक शिक्षा की बोझ ढोती है बचपन!! 
        

पढ़ाई की इस अंधाधुंध दौर में ,
बचपन ना खिलखिलाता अब भोर में 
सुबह से लेकर शाम तक, 
 पढ़ते-पढ़ते जाते हैं थक , 
 खिलने से पहले मुरझा जाती है चमन ! 

सिसक-सिसक कर रोती है बचपन , 
आधुनिक शिक्षा की बोझ ढोती है बचपन!! 

 सब मिलकर करे बचपन सरकार , 
 मिले बचपन को मूलभूत-अधिकार, 
ना वंचित हो कोई शिक्षा से, 
 कोई बचपन कटे ना भिक्षा से , 
है हर घर का बस यही चमन ! 

 सिसक-सिसक कर रोती है बचपन , 
आधुनिक शिक्षा की बोझ ढोती है बचपन! ! 

बाल-श्रमिक ना बंधुआ मिले , 
मीठी मुस्कान से बचपन खिले , 
  फुटपाथ पर ना शाम ढले , 
 नंगे पांव ना बचपन चले , 
पेट की आग में ना भीगे नयन ! 

सिसक-सिसक कर रोती है बचपन , 
 आधुनिक शिक्षा की बोझ ढोती है बचपन!! 

बचपन को ना छीने हम,  
  अपनी चाहत की ऊंचाई में , 
आधुनिकता के चक्कर में ही , 
शिक्षा और संस्कार गई है खाई में , 
 बोझ कम कर दो बालपन की , 
फिर चहकने लगेगी गुलशन ! 

  सिसक-सिसक कर रोती है बचपन , 
 आधुनिक शिक्षा की बोझ ढोती है बचपन ! ! 

             दूजराम साहू
         निवास -भरदाकला
           तहसील -खैरागढ़
        जिला -राजनांदगांव (छ.ग.)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद