आधुनिकता की आग – पं. शिवम् शर्मा

आधुनिकता की आग – पं. शिवम् शर्मा

कविता संग्रह
कविता संग्रह

जरा सी नई धूप क्या लगी सिनेमा जगत की ,
जिस्म की जमी पर !
नस्ल की फसल बढ़ भी ना पाई की पक गई !!

लिवास छोटे – छोटे और छोटे होते ही चले गए !
नंगे जिस्म पर पेटिंग रच गई !!

कट गए पेड़ कपास के जमी से सभी के सभी !
और इंसानों के जिस्म ने भी ,
जानवरो की खाल उतार के ढक ली !!

घर के दरख़्त सड़को पर बिखरे पड़े दिखते है !
और घोसलो के परिंदो ने ,
जमीं सारी की सारी अपने हक में कर ली !!

बेंच डाली पुरखों की डेहरी औने पौने दाम में !
और शहरों में दो कमरे की छत
खरीदकर कहते है हमने खूब तरक्की कर ली !!

आबरू उतार फेकी बेटियो ने आधुनिकता की
आग में आज !
और बताते है बेटो ने अपनी सोच छोटी कर ली !!

बदल डाले प्रभु राम कृष्ण की कथा के सार सभी ,
टी आर पी की चाह में !
जिसे देख युवा तर्क देते है भगवान ने भी यही किया,
हमने कौन सी गलती कर दी !!

धर्म ग्रंथ मानस पुराण सब हुए झूठे किस्से कहानी !
टीवी चैनलों ने अपनी अलग ही रामायण लिख दी !!

पं. शिवम् शर्मा

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