जिंदगी पर कविता -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

जिंदगी पर कविता

आज सुबह-सुबह
मित्र से बात हुई
उसने हमारे
भलीभांति एक परिचित की
आत्महत्या की बात बताई
मन खिन्न हो गया

जिंदगी के प्रति
क्षणिक बेरुखी-सी छा गई
सुपरिचित दिवंगत का चेहरा
उसके शरीर की आकृति
हाव-भाव
मन की आँखों में तैरने लगा

किसी को जिंदगी कम लगती है
किसी को जिंदगी भारी लगती है
जिंदगी बुरी और मौत प्यारी लगती है

जिंदगी जीने के बाद भी
जिंदगी को अहसास नहीं कर पाते
मिथ्या रह जाती है जिंदगी

जिंदगी मिथ्या है तो–
मिथ्या-जिंदगी कठिन क्यों लगती है ?
मिथ्या-जिंदगी से घबराते क्यों हैं ?

पल भर में आती है मौत
इतनी आसान क्यों लगती है?
इतनी सच्ची क्यों लगती है ?

भागना छोड़ो,सामना करो
मिथ्या जिंदगी को आकार दो
मिथ्या जिंदगी को सार्थक बनाओ

जिंदगी खिलेगी
जिंदगी महकेगी
मरने के बाद
अमर होगी जिंदगी

मौत को अपनाओ मत
वह खुद अपनाती है
अपनाओ जिंदगी को
जो तुम्हें अमर बनाती है।

— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

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