Author: कविता बहार

  • नदी की सुन्दरता / अकिल खान

    नदी की सुन्दरता / अकिल खान

    नदी की सुंदरता

    hasdeo river

    नदी हूंँ मैं मेरी शान है अनोखी-निराली,
    मेरी जल से छाई है चारों ओर हरियाली।
    मेरी तट में विराजमान हैं कई तीर्थ-स्थान,
    मानव इतिहास का पृथ्वी में करूं बखान।
    कहीं रूद्र-शांत तो कहीं मन को हरता,
    है अदम्य-अकल्पनीय,नदी की सुंदरता।

    हिमखंड वर्षा की जल से बहूँ कल-कल,
    पर्वत से निकलकर मैदान में पहुंँचे जल,
    नाविक करें मत्स्याखेट और गाए मल्हार गीत,
    मानव-पशु स्नान करें देख मन हो अति हर्षित।

    करे सबको तृप्त नदी की है ये उदारता,
    है अदम्य-अकल्पनीय,नदी की सुंदरता।

    नदी किनारे कीचड़-रेत और विशाल लंबे पेड़,
    कृषि करें बिजली बनाएं और कहीं नमक-मेड़।

    जल से साफ करें बर्तन-कपड़े और मल,
    कारखानों कि प्रदूषण से दूषित होता जल।
    यह देख नदी मानव को है धिक्कारता,
    है अदम्य-अकल्पनीय,नदी की सुंदरता।

    मैं सभ्यता की जननी हूं न करो मेरा अपमान,
    काट वृक्ष बढ़ती आबादी से नष्ट करता इंसान।
    कहती है नदी मेरी अस्तित्व को बचा लो,
    मानव कुकृत्य को मेरी जीवन से हटा लो।
    हे मानव तुम हो वीर कैसी है ये कायरता,
    है अदम्य-अकल्पनीय,नदी की सुंदरता।

    मेरी जल से करें व्यापार और मनाएं त्यौहार,
    कर पूजा पाठ मानव करे जीवन का उद्धार।
    नदी बचाओ ये जीवन को है संवारता।
    है अदम्य-अकल्पनीय,नदी की सुंदरता।

    —– अकिल खान रायगढ़ जिला रायगढ़ (छ.ग.) पिन – 496440.

  • हसदेव बचाव अभियान पर कविता

    हसदेव बचाव अभियान पर कविता

    हसदेव बचाव अभियान पर कविता

    हसदेव को बचाना है

    hasdeo river

    पेड़ काटोगे तो हवा घटेगी,जल हो जायेगा गुम,
    मानव तेरे पतन का,चहूंँ ओर होगा धूम ही धूम।
    कहीं लुप्त हो जाएगा,यह प्रकृति का सुंदर चित्र,
    मनुष्य मारे पैर में कुल्हाड़ी,यह कार्य है विचित्र।
    वक्त की यही है आवाज,विश्व को भी बताना है,
    जग के अस्तित्व के लिए,हसदेव को बचाना है।

    ऐश्वर्य पूर्ण जीवन में,माटी-पुत्र कहीं खो गया,
    वन को काट कर, ‘इमारती पलंग’ में सो गया।
    पुछता है ‘अकिल’,क्या कोयला ही खजाना है?
    जग के अस्तित्व के लिए,हसदेव को बचाना है।

    यकीनन वनांचल के लोगों का,पहचान है वन,
    पेड़ से मिले शुद्ध वायु,स्वस्थ होता है तन-मन।
    जंगल की शान है,जीव-जंतुओं का हलचल,
    वन से लोगों को मिलता है,रोजगार हर-पल।
    जान कर भी अंजान है,देखो कैसा जमाना है?
    जग के अस्तित्व के लिए,हसदेव को बचाना है।

    विद्युत तो और भी तरीके से बन जाएगा,
    लेकिन यह अनमोल पेड़,कौन बनाएगा?
    शुद्ध हवा के अभाव में,हर जीव मर जाएगा,
    इंसान के अभाव में,पृथ्वी को कौन बचाएगा?
    युवा शक्ति की आवाज है,हर पेड़ को बचाना है,
    जग के अस्तित्व के लिए,हसदेव को बचाना है।

    छ.ग.हो रहा है तबाह,कृपया इसे बचाईए,
    हसदेव की रक्षा के लिए,सभी आगे आईए।
    है निवेदन,सभी जगह मे आंदोलन छेड़ दो,
    ‘हसदेव’ के विरूद्ध,हर कदम को खदेड़ दो।
    प्रकृति है हमारी पहचान,बस यही समझाना है,
    जग के अस्तित्व के लिए,हसदेव को बचाना है।

    वक्त रहते,वक्त का किजीए सम्मान
    हसदेव है धरोहर,हसदेव है पहचान।
    अब नहीं तो,कब तो सुधरेगा इंसान?
    ‘हसदेव’ मुहिम का संभालिए कमान,
    उठकर देखिए गौर से,साथ मे संपूर्ण जमाना है,
    जग के अस्तित्व के लिए,हसदेव को बचाना है।
    #SaveHasdeo
    #StandWithAdivasis

    अकिल खान,जिला – रायगढ़ (छ.ग.).

  • ठंडी का मौसम -अंजनी कुमार शर्मा

    ठंडी का मौसम -अंजनी कुमार शर्मा

    ठंडी का मौसम –अंजनी कुमार शर्मा

    moon

    आया है ठंडी का मौसम
    सूरज का बल हुआ है कम
    ओढे़ कोहरे की चादर
    गाँव-गाँव और नगर-नगर
    स्वेटर पहने जन पडे़ दिखाई
    ओढे़ कंबल और रजाई
    काँप रहा है कलुआ कुत्ता
    खलिहान में पडा़ है दुबका
    ठंडी के आगे सब हारे
    छिप गये हैं चाँद और तारे
    बर्फीली हवाएँ जब चलती
    तन-मन में तब सिहरन उठती
    और फिर कूछ नहीं सूझता
    अलाव का सहारा दिखता
    ठंडी जब-जब आती है
    सच में, बहुत सताती है।

    अंजनी कुमार शर्मा

  • गुलाब पर कविता/ माला पहल

    गुलाब पर कविता/ माला पहल

    गुलाब पर कविता

    गुलाब पर कविता/ माला पहल
    gulab par kavita

    गुलाब- गुल की आभा

    मैं हूँ अलबेला गुलाब,
    नहीं झुकता आए सैलाब।
    आँधी या हो तूफान,
    या तपे सूरज घमासान।
    कांटो को लपेटे बनाए परिधान,
    यही तो है मेरी पहचान।
    मुझसे पूछो कैसे पाएँ पहचान,
    मुस्कुराकर ले सबसे अपना सम्मान।
    चुभ जाऊँ अगर मैं भूलकर,
    फिर भी चूमा जाऊँ झुककर।
    सजूँ सजाऊँ हर मौके पर,
    यही तो ईश कृपा है मुझपर।
    मुरझा कर सुगंध दे जाऊँ,
    हर पल परिसर को महकाऊँ।
    अपने नाम का अर्थ बताऊँ,
    गुल से फूल और आब से आभा बन जाऊँ।
    तभी तो हूँ मैं परिपूर्ण,
    मेरे अस्तित्व के बिना उपवन अपूर्ण।
    हाँ मैं ही तो हूँ अलबेला गुलाब,
    फूलों का सरताज जनाब!!

    माला पहल ‘मुंबई’

  • उषाकाल पर कविता /नीलम

    उषाकाल पर कविता /नीलम

    उषाकाल पर कविता / नीलम

    jivan doha

    उषा के आगमन से रूठकर
    निज तिमिर विभा समेटकर
    ह्रदय मुकुल अपना सहेजकर
    माधवी निशा कित ओर चली•••

    सज सँवर वह दमक-दमक कर
    तीखी नयन वह चहक-चहक कर
    सुरभि का देखो सौरभ खींच कर
    मादक सी चुनर ओढ़ चली•••

    मंद-मंद मधु अधरों की लाली
    अलसित देह अमि की प्याली
    छोड़ विगत घाट पर अलबेली
    बहती निर्झर वह चितचोर चली•••

    प्राची का सूर्य खड़ा समीप
    मृदुल किरणों का लेकर दीप
    सहज सरल गुमसुम सरिता सी
    अविरल आसव वह खोज चली•••

    जीवन का वह संदेश सुनाती
    आशा तृषा की बात बताती
    स्व के अहं का अवरोध हटाती
    नित नई नूतनता की ओर चली••••                     

     नीलम ✍