Author: कविता बहार

  • तितली पर बाल कविता

    तितली पर बाल कविता

    तितली पर बाल कविता

    नीली पीली काली तितली।
    सुंदर पंखों वाली तितली।।

    तितली पर बाल कविता

    आए-जाए फूलों पर ये,
    घूमे डाली-डाली तितली।।

    कुदरत ने कितने रंग भरे,
    लाड-चाव से पाली तितली।।

    फूल-फूल पर आती जाती,
    रहती है कब खाली तितली।।

    सब को खुशियां देने वाली,
    ऐसी है मतवाली तितली।।

    छूने से ये डर जाती है,
    नाजो-नखरे वाली तितली।

    -विनोद सिल्ला

  • पशु पक्षियों की पाठशाला ( कविता )

    पशु पक्षियों की पाठशाला ( कविता )


    सुबह हुई है देखो भाई,
    पशु पक्षियों ने कक्षा लगाई,
    कौवा बोला ‘क’ से मैं,
    कोयल बोली ‘क’ से मैं,
    कबूतर बोला ‘क’ से मैं,
    ख से मैं हूँ खरगोश,
    बोला सब हो जाओ खामोश,
    न करो तुम आपस में लड़ाई,
    हमने अपनी अपनी पहचान बनाई,
    ‘ग’ से बोले गधे भाई,
    एकता में है शक्ति समाई
    इतने में आये घोड़े महाराज, सुंदर कपडे पहन कर साज,
    आपस में मत उलझो भाई,
    मिलजुल कर हम करेंगे पढ़ाई,
    रानी,रोशन हमसे सीखेंगे झूम झूम
    पढ़ लिख कर उनका निखरेगा रूप,
    घूम घूम कर हम पढ़ाई का महत्व समझायेंगे .,
    हर बच्चे को पाठशाला भिजवाएंगे।।

    माला पहल मुंबई से

  • गाय पालन पर छत्तीसगढ़ी कविता

    गाय पालन पर छत्तीसगढ़ी कविता

    hindi poem on Animals
    जानवरों पर कविता

    पैरा भूँसा ,कांदी-कचरा,कोठा कोंन सँवारे,
    हड़ही होगे ,बछिया कहिके रोजेच के धुत्कारे।।

    बगियाके बुधारू ,छोड़िस,
    गउधन आन खार।
    बांधे-छोरे जतने के,
    झंझट हे बेकार।।

    बछिया आगे शहर डहर अउ
    पारा-पारा घुमय।
    कोनो देदे रोटी-भात
    लइका मन ह झुमय।।

    देखते-देखत बछिया संगी
    घोसघोस ले मोटागे।
    चिक्कन-देहें ,दिखन लागय
    मन सबके हरसागे।।

    आना होगे एक दिन संगी
    बुधारू के हाट।
    देख परिस ,बछिया ल
    लालच करिस घात।।

    धरे-धरिस बछिया ल
    बछिया ह लतियारे।
    पुचकारय त बुधारू ल
    बछिया मुड़ म मारय।।

    आँखी डबडब होवत रहय
    गउधन के संगवारी।
    मन म गुनत-सोंचत रहय
    ये कइसन रखवारी…
    अउ ये कइसन गद्दारी….???


    धनराज साहू बागबाहरा

  • हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर कविता

    हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर कविता

    हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर कविता

    सच कहो,
    चाहे तख्त पलट दो, चाहे ताज बदल दो
    भले “साहब” गुस्सा हो, चाहे दुनिया इधर से उधर हो
    तुम रहो या ना रहो
    पर, जब कुछ कहो तो, सच कहो।

    सच पर ही तो, न्याय टिका है
    शासन खड़ा है, धर्म बना है
    हे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ!
    सच से ही तुम हो
    तो, अगर कुछ कहो तो, सच कहो।

    तुम अपनी राय मत दो
    तुम किसी के गुलाम नहीं हो
    सिर्फ, सच दिखाओ आवाम को
    मरो-कटो-खपो, लड़ो-भिड़ो-गिरो
    पर, अगर कुछ कहो तो, सच कहो।

    ध्यान रखो, तुम न “साहब” के हो
    ना ही तुम “शहजादे” से हो
    तुम सिर्फ देश के जवाबदेह हो
    सच बोलने से जो दर्द हो, तो चीख लो

    पर, तंत्र को जिंदा रखो
    लोकतंत्र को जिंदा रखो
    सच झूठ के इस युद्ध को, रोक दो
    हे लोकतंत्र-स्तंभ! बस, सच बोल दो. .!!

    प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”
    युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
    लखनऊ, उत्तर प्रदेश
    सचलभाष/व्हाट्सअप : 6392189466

  • दीपावली पर कविता (Diwali kavita in hindi)

    का के राजा रावण का वध कर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तो उस दिन पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी. भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या आगमन पर दिवाली मनाई गई थी. हर नगर हर गांव में दीपक जलाए गए थे. तब से लेकर आज तक दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है. और इसी पर आधारित ये कुछ कविताएँ –

    भले ही न आए लक्ष्मी

    दीपावली पर कविता (Diwali kavita in hindi)

    आशंका है मुझे,
    कार्तिक मास की
    अमावस को
    लक्ष्मी के आने की।

    लोगों ने
    इतनी लड़ियाँ लगाई
    लक्ष्मी को लेकर।
    कैसे आ पाएगा
    उसका वाहन उल्लू?
    चुंधिया जाएंगी
    उसकी आँखें
    लड़ियों के प्रकाश से।

    डर जाएगा उल्लू
    आतिशबाजी की
    कानफोड़ू ध्वनि से।
    वह हो जाएगा बेहोश
    आतिशबाजी के धुंए से।

    इसलिए ही
    मैंने नहीं लगाई लड़ियाँ।
    नहीं फूंके पटाखे
    नहीं की आतिशबाजी
    नहीं खाई
    मिलावटी मिठाई।

    भले ही न आए लक्ष्मी
    जो पास है
    वह तो न जाए।

    विनोद सिल्ला

    चार दीयों से खुशहाली

    चार दीयों से खुशहाली
    चार दीयों से खुशहाली
    ( लावणी छंद )

    एक दीप उनका रख लेना,
    तुम पूजन की थाली में।
    जिनकी सांसे थमी रही थी,
    भारत की रखवाली में.!!

    एक दीप की आशा लेकर,
    अन्न प्रदाता बैठा है। ।
    शासन पहले रूठा ही था,
    राम भी जिससे रूठा है।

    निर्धन का धर्म नही होता,
    बने जाति भी बेमानी ।।
    एक दीप उनका भी रखकर,
    समझो सब राम कहानी।।

    एक दीप शिक्षा का रखकर,
    आखर अलख जगालो तुम।
    जगमग होगी दुनिया सारी,
    खुशियाँ खूब मनालो तुम।

    चार दीप सब सच्चे मन से,
    दीवाली रोशन करना।
    मन में दृढ़ सकल्प यही हो,
    देश हेतु जीना – मरना।

    और दीप भी खूब जलाना,
    खुशियाँ मिले अबूझ को।
    खील बताशे, लक्ष्मी-पूजन,
    गोवर्धन, भई दूज को।

    बाबू लाल शर्मा

    अमावस्या पूनम बनने को अड़ी है

    सजे हैं बाजार जगमगाता शहर है,
    दीपोत्सव आया आनंद लहर है,
    अंधेरे से आज दीपों की ठनी है,
    अमावस्या पूनम बनने को अड़ी है।

    बड़े बच्चे सबके खुशी की घड़ी है
    हर द्वार वंदनवार फूलों की लड़ी है।
    स्वागत में माँ लक्ष्मी के सब खड़े हैं,
    फूट रहे हैं पटाखे जली फुलझड़ी है।

    खुशी ही खुशी सबके चेहरे पे छाई,
    गले मिलते देखो खिलाते मिठाई,
    रिश्ते निभाने को प्रेम बढ़ाने को,
    दीवाली उत्सव सर्वोत्तम कड़ी है।

    चौदह बरस के वनवास से राम,
    लौटे इसी दिन थे वो अपने धाम,
    मनाया नगरवासियों ने था आनंद,
    वही रीत युग-युग से चल पड़ी है।

    गीता द्विवेदी

    शुभ धनतेरस

    हृदय में हर्षोल्लास हो,
    माता लक्ष्मी जी का वास हो।
    खुशियों भरा हो जीवन,
    सुख शांति की सौगात हो।।
    घर में आये खुशहाली,
    धन संपदा की बरसात हो।।
    परिवार हो समृद्ध ,
    भगवान कुबेर जी पास हो।
    धूप दीप पुष्प अर्पण करुँ,
    जब तक अंतिम श्वास हो।
    सम्पन्न एवं समृद्धशाली बने,
    माँ रमा जी का आशीर्वाद हो।
    पूर्ण हो आप सभी की,
    समस्त मनोकामनाएं।
    धनतेरस एवं दीपावली की,
    आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं।।

    महदीप जंघेल

    जगमग दीया जलाबो

    चक चंदन दिखे सुघ्घर,
    लिपे -पोते घर आंगन उज्जर !
    जगमग दीया जलाबो,
    लक्ष्मी दाई ल मनाबो !

    पावन पबरीत परब आए हे,
    मिल -जुल के मनाबो !
    मया पिरीत के दीया म संगी
    सुनता के बाती लगाबो !
    बिरबिट कारी ये अंधियारी ,
    सुरहुती मभगाबो !

    जाति -धरम के खोचका -डिपरा,
    मेड़पार बरोबर करबो !
    परे- डरे गीरे -थके के,
    दुख -पीरा ल हरबो !
    गरीब गुरवा के कुरिया म
    चंदा- चंदईनी ऊगाबो!

    पचदिनिया देवारी तिहार- पद्मा साहू

    आगे जगमग-जगमग पचदिनिया, देवारी तिहार।
    लीपे पोते सुग्घर दिखत हावे, जगमग घर दुवार।

    धनतेरस के खरीदी भारी, सोना,चांँदी,बर्तन भाड़ा,
    नवा-नवा कपड़ा लत्ता लेवत, मन भरे उद्गार।
    करसा दीयना लेवे, अउ लेवे फटाका सुरसुरी ,
    दाई बहिनी लेवत हावे, चूड़ी फुंदरी पुछत मनिहार।
    पाँचे दिन के देवारी, कातिक महीना के भईया,
    अंतस मा लाथे प्रेम भाईचारा, खुशियाँ अपार।
    आगे जगमग,,,,,,,,,,

    नरक चउदस यमदेव बर, अँगना मा चंउक पुराबो,
    दूर हो जाहि अकाल काल, यमदूत के जम्मो बिचार।
    घरो घर लछमी दाई के आरती, अउ होही दीपदान,
    जगमगावत दीया चारों कोती, मिट जाही अंधियार ।
    कार्तिक मावस के, कुलूप अंधियारी रात मा,
    पाँव परत लछमी दाई के, हो जही उजियार।
    आगे जगमग,,,,,,,,,,,,,

    गौरा-गौरी के कलशा निकलही, होत पहाती गली में,
    रिगबिग-रिगबिग बरही दीया, मन के हरत अंधियार।
    गिरधर भोग लगा, गाय गरुवा ल खिचड़ी खवाबो,
    ठाकुर घर जोहारत, राउत भईया मन करही जोहार।
    गऊ माता ल सोहई बांध, कोठी डोली भरे देही आशीष,
    राउत मन काछन घोंडत,पारही आनीबानी दोहा गोहार।
    आगे जगमग,,,,,,,,,,,,,

    गौठाने मा कुम्हड़ा ढूला, होगी अखाड़ा मतराही,
    किसम-किसम फटाका जला,मनाबो देवारी तिहार।
    लईका सियान सब, नवा-नवा कुर्ता पहीने,
    धूमधड़ाक जलाही सब, फुलझड़ी, बम,अनार।
    यम-यमुना भाई बहिनी के, तिहार भाई दूज,
    एक दूसर के रक्षा करे, देही वचन अउ उपहार।
    आगे जगमग-जगमग, पचदिनिया देवारी तिहार।
    लीपे पोते सुग्घर दिखत हावे, जगमग घर दुवार।

    पद्मा साहू “पर्वणी”
    खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

    आगे देवारी तिहार

    तिहार आगे ग , तिहार आगे जी,
    लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे।
    मन म खुशी अमागे ग,
    मन म खुशी अमागे जी।
    जुरमिल के दिया बारे के,
    तिहार आगे ।

    घर -घर गांव शहर,
    पोतई बूता चलत हे।
    दाई माई दीदीमन,
    छभई मुंदई करत हे।
    गांव -गांव ,गली-गली,
    अंजोर बगरत हे।
    जगमग जगमग ,
    दियना बरत हे।
    जीवन म सबके ,उजियार आगे जी,
    लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे।।

    घर अंगना म दिया,
    ख़ुशी के जलत हे।
    प्रेम अउ मया के ,
    झरना झरत हे।
    लक्ष्मी मइया के ,
    अशीष बरसत हे।
    सुख अउ शांति ,
    घर म उपजत हे।
    घर-घर ख़ुशी के बहार ,आगे जी
    अंधियारी दानव ल भगाय बर,
    अंजोरी तिहार आगे जी।।
    लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे।।

    लड़ई झगरा अउ,
    बैर ल भुलाय के।
    एके जगह रहिके,
    सुख-दुख ल गोठियाय के।
    पारा परोस म ,
    सुख बगराय के।
    मया पिरित के ,
    दियना ल जलाय के।
    तिहार आगे जी ,तिहार आगे ।
    एकमई होके दिया बारे के,
    तिहार आगे।
    लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे ।
    तिहार आगे…….

    महदीप जंघेल

    दीया बन प्रकाश करे-मदन सिंह शेखावत

    दीया बन प्रकाश करे, हटाए अंधकार ।
    जग मे सुन्दर काम कर,कुसमित हो संसार ।
    कुसमित हो संसार ,अन्धेरा रह न पाये।
    ज्ञान की लौ लगाय,तिमिर को दूर भगाये।
    कहै मदन कविराय, संसार से खुब लीया ।
    सुन्दर करके काज,जले खुद बनकर दीया।।

    जीवन मे उत्साह हो,घर घर मंगलाचार ।
    तभी सार्थक दिपावली,बदले सब व्यवहार।
    बदले सब व्यवहार,मदद के हाथ बढाये।
    खुशियो का उपहार, दीन के घर पहुचाये
    कहै मदन कविराय,खुशिया बहुत है मन मे।
    मिल कर सभी मनाय, बांटले सब जीवन मे।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर 

    शुभ दिवाली

               (1)
    हर घर दीया जला होगा,
    जीवन में अंधेरा मिटा होगा।
    शुभ दीवाली हर आँगन हो,
    खुशियों से घर भरा होगा।
              (2)
    न कोई अब दुखी होगा,
    न गम का अंधेरा होगा।
    सभी आत्मजोत जगा लो,
    नई रोशनी से सवेरा होगा।
             (3)
    न किसी से बैर होगा,
    न किसी से झगड़ा होगा।
    प्रेम की गंगा बहा दो,
    हर कोई अपना होगा।
              (4)
    न सिर शर्म से नीचा होगा,
    न ही घमंड से ऊचां होगा।
    सदभावना का दीप जला लो,
    रोशन विश्व समूचा होगा।
             (5)
    न किसी से गिला होगा,
    न किसी का भय होगा ।
    सबको मिलकर गले लगा ले,
    गदगद तेरा हृदय होगा।

    रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”

    गरीब के दीवाली

    का छिरछिरी? का मिरचा? का गोंदली फटाखा?
    का सूरसूरी अऊ थारी?नी जाने एटम के भाखा?
    नी फोरे फटाखा मोर संगी,  नइ होवे जी डरहा।
    दूसर के खुशी ल देखके,  खुश होवथे गरीबहा।
    खाय तेल म बरे दीया, धाज आये लाली लाली।
    रात भर जल रे दीया, तय ही गरीब के दीवाली।
    का के नवा ओनहा अउ ,का खरीदिही साजू ?
    जइसे तइसे जिनगी काटे, मांग के आजू बाजू।
    छुहीगेरू के लीपईपोतई  ,आमाडारा बांधत हे।
    लखमी पूजा के खातिर , जवरी भात रांधत हे।
    कोन जानी कब भेजत हे मां ,घर म खुशहाली।
    रात भर जल रे दीया, तय ही गरीब के दीवाली।
    रिंगीचिंगी रंगोली देखके ,लइकामन मोहावत हे।
    कोयला, ईंटागुड़ा , हरदी पीसके फेर रंगावत हे।
    अपन कलाकारी म,सब्बोझन ला मोहे डारत हे।
    मन के खुशी ह बड़े होथे, एहि बात बगरावत हे।
    कृपा कर एसो अन्नपूरना,  सोनहा कर दे बाली।
    रात भर जल रे दीया,  तय ही गरीब के दीवाली।

    मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

    मोर संग चलव रे

    (मोर संग चलव रे…. आदरणीय श्री लक्ष्मण मस्तुरिहा के गीत से प्रेरित व उसी के तर्ज़ पर)

    मोर संग पढ़व रे
    मोर संग गढ़व ….
    ओ दीदी बहनी नोनी मन
    अउ लइका के महतारी मन
    मोर संग पढ़व रे
    मोर संग गढ़व ।

    महिला मन के हक ल छिनै
    ए पुरुष समाज।
    भोग विलास के चीज जानै
    लुट के जेकर लाज।
    अपन लड़ई अपन हाथ म
    अपन रक्षा करव रे।
    मोर संग लड़व ….

    बंध के नारी, चारदीवारी
    कइसे विकास पाय।
    घुट घुट के मर जाही तभोले
    पुरूष नी करे हाय।
    भीख बरोबर मांगव झन
    आपन हक़ छीनव रे।
    मोर संग लड़व…..

    मनीभाई नवरत्न

    किसान के दरद

    कनहू नी समझे
    किसान के दरद ला।
    पहिली के पहिली बूता
    हर बाचेच हे।
    समे नइये  गंवई घूमे के ,
    लोकजन ला भूला गयहे
    रबी फसल के चक्कर म ।
    एसो लागा ल भी
    अड़बड़ छुट करिस शासन ह।
    तहुंच ले नई चुकता होईस
    सेठ के तीन परसेंटी बियाज।
    जोशेजोश म बोर ल खदवाईस हे।
    जम्मो डोली टिकरा ल उपजाईस हे।
    बिजली आफिस के
    कोरी चक्कर लगाईस हे।
    टेंशन म सबो चुंदी झर्राईस हे।
    कनहू काल म
    “लईन गोल” हो जाथे।
    गेरी के मछरी बरोबर
    हो जाथे किसान।
    न खेत-खार पोसै सकय न छाड़त।
    हदरके हटर-हटर
    काटत राथे मंझनिया
    रुक तरी म।
    लेकम
    कनहू नी समझे किसान के दरद ला
    किसनहा मन ही जानही……
    ✒️मनीभाई ‘नवरत्न’ भौंरादादर,बसना, छत्तीसगढ़।

    मोर संग पढ़व रे 

    मोर संग पढ़व रे 
    मोर संग लिखव रे
    ओ दीदी बहनी नोनी मन
    अउ लइका के महतारी मन
    मोर संग पढ़व रे 
    मोर संग लिखव रे

    महिला मन के हक ल छिनै
    ए पुरुष समाज। 
    भोग विलास के चीज जानै
    लुट के जेकर लाज। 
    अपन लड़ई अपन हाथ म
    अपन रक्षा करव रे। 
    मोर संग लड़व …. 

    बंध के नारी, चारदीवारी
    कइसे विकास पाय।
    घुट घुट के मर जाही तभोले
    पुरूष नी करे हाय। 
    भीख बरोबर मांगव झन
    आपन हक़ छीनव रे। 
    मोर संग लड़व….. 

    मनीभाई नवरत्न

    महतारी के मया

    महतारी के मया ल,आखर म कैसे कहौ?
    दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
    लाने हस मोला दुनिया म
    मोर अंग अंग म तोर अधिकार हे।
    भगवान बरोबर तय होथस ,
    तोर पूजा बिना चारोंधाम बेकार हे।
    तोर आशीष मोर मुड़ म तो,जग ला नई डरौ।
    दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
    भुख लागे ल दाई मोर,
    अपन हाथ ले कौंरा खवाथें।
    हिचकी आ जाय ले,
    लकर-धकर  पानी  पियाथें।
    अतक मया हे कि मुहु ले न बोले सकौ ।
    दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
    बाबूजी मोर आजादी के,
    सब्बो दिन खिलाफत रइथें।
    महतारी बूता ले छुट्टी दे के
    झटकुन घर आ जाबे कहिथें।
    मोर मन के सबो बात,दाई ल कहे सकौ।
    दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
    बोली भाखा सिखाय हे,
    दय हे जिनगी के ग्यान।
    सुत उठके आशीष दय,
    मोर बेटा बने जग म महान।
    करज उतारे बिना तोर, हरू नई होय सकौ।
    दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।

    छत्तीसगढ़, मनीभाई ‘नवरत्न’, 

    मनीभाई नवरत्न