Author: कविता बहार

  • संविधान दिवस को समर्पित दोहे

    संविधान दिवस को समर्पित दोहे

    संविधान दिवस को समर्पित दोहे

    संविधान में लिख गए, तभी मिले अधिकार।
    बाबा साहब आप को, नमन करें शत बार।।

    संविधान ने ही दिया, मान और सम्मान।
    वरना तो हम थे सभी,खुशियों से अनजान।।

    संविधान से ही मिला, जीवन का अधिकार।
    वरना तो खाते रहे, वर्णाश्रम की मार।।

    छुआछूत भी कम हुआ, शुद्र हुए आजाद।
    जात-पात को खत्म कर,किए सभी आबाद।।

    महिलाओं का मान हो, संविधान में लेख।
    पदासीन ये आज हैं,कितनी महिला देख।।

    उपासना का हक दिया,रखा सभी का मान।
    उदारता से कर दिया,भारत देश महान।।

    संविधान से हैसियत, वरना थे हम दास।
    संविधान दिन है बना,बाकि दिनों से खास।।

    आम आदमी को मिली, राजभवन की राह।
    पैदा रानी पेट से, होता था तब शाह।।

    दीप जला के लो मना, घड़ी खुशी की आज।
    आज थिरक बहुजन रहा,बजे भीम का साज।।

    “सिल्ला” भी है पढ़ रहा, संविधान को रोज।
    मान और सम्मान मिला, करता देखो मौज।।

    -विनोद सिल्ला

  • संविधान शुभचिंतक सबका

    संविधान शुभचिंतक सबका (आल्हा छंद)

    विश्लेषकजन का विश्लेषण, सुधीजनों का है उपहार।
    संविधान शुभचिंतक सबका, बांटे जो जग में अधिकार।।

    जन मानस सब विधि के सम्मुख, कहते होते एक समान।
    अपने मत का पथ चुन लें हम, शिक्षा का भी मुक्त विधान।।
    समता से अवसर हो हासिल, सबके सपने हों साकार।
    संविधान शुभचिंतक सबका, बांटे जो जग में अधिकार।।

    कौन करेगा शासन हम पर, कौन बनाए यहां विधान?
    जनता को अधिकार प्राप्त है, स्वेच्छा से कर ले मतदान।।
    जनता ही जनता का शासक, जनता से बनती सरकार।
    संविधान शुभचिंतक सबका, बांटे जो जग में अधिकार।।

    कर्तव्य बद्ध इससे होते, यहीं दिलाए सबको न्याय।
    अधिकारों की रक्षा खातिर, नियम बनाए हैं बहुताय।।
    अधिकारों का हनन अगर हो, दें संवैधानी उपचार।
    संविधान शुभचिंतक सबका, बांटे जो जग में अधिकार।।

    रहन-सहन सांस्कृतिक भिन्नता, मगर संगठन है पहचान।
    जाति-धर्म है पृथक मगर हम, कहते सब हैं हिन्दुस्तान।।
    भाईचारा भाव लिए हम, सबसे समता का व्यवहार।।
    संविधान शुभचिंतक सबका, बांटे जो जग में अधिकार।।

    सब अपने में सबल-सफल हों, शेष नहीं कोई लाचार।
    संविधान शुभचिंतक सबका, बांटे जो जग में अधिकार।।

    🌺🌺🌼🌼🌺🌺🌼🌼🌺🌺

    🖊️ विनोद कुमार चौहान “जोगी”
    जोगीडीपा सरायपाली

  • मैं हूँ मोहब्बत – विनोद सिल्ला

    मोहब्बत

    मुझे
    खूब दबाया गया
    सूलियों पर
    लटकाया गया
    मेरा कत्ल भी
    कराया गया
    मुझे खूब रौंदा गया
    खूब कुचला गया
    मैं बाजारों में निलाम हुई
    गली-गली बदनाम हुई
    तख्तो-ताज भी
    खतरा मानते रहे
    रस्मो-रिवाज मुझसे
    ठानते रहे
    जबकि में एक
    पावन अहसास हूँ
    हर दिल के
    आस-पास हूँ
    बंदगी का
    हसीं प्रयास हूँ
    मैं हूँ मोहब्बत
    जीवन का पहलू
    खास हूँ।

    विनोद सिल्ला©

  • संविधान दिवस पर कविता

    संविधान दिवस पर कविता

    हां
    मैं सेकुलर हूँ
    समता का समर्थक हूँ
    मैं संविधान प्रस्त हूँ
    सेकुलर होना गुनाह नहीं

    गुनाह है
    सांप्रदायिक होना
    गुनाह है
    जातिवादी होना
    गुनाह है
    पितृसत्ता का
    समर्थक होना
    गुनाह है
    भाषावादी होना
    गुनाह है
    क्षेत्रवादी होना
    गुनाह है
    भेदभाव का
    पोषक होना।

    -विनोद सिल्ला©

  • मैं सो जाऊं – बाल कविता

    बाल गीत

    प्यारे प्यारे सपनों की दुनिया में, मैं खो जाऊं।
    चंदन के पलने में मुझे झुलाओ, मैं सो जाऊं।

    ममता का आंचल ओढ़ कर, तेरा राजा बेटा,
    सुकून भरी नींद में मुझे सुलाओ, मैं सो जाऊं।

    परियों की दुनिया की सैर, करनी है सपने में,
    चंदा तारे सब मुझे खिलाएं, मैं सो जाऊं।

    मम्मी मेरी सबसे प्यारी, पापा भी प्यारे प्यारे हैं।
    हम सब बच्चे मम्मी पापा की, आंखों के तारे हैं।

    डांट लगाते वो हमें, जब हम शैतानी करते हैं।
    प्यार से गोद में खिलाते, अच्छे बच्चे बन जाते हैं।

    मुश्किल में कहते मत घबराना, साथ हम तेरे हैं।
    सबसे ज्यादा प्यार हमें करते, मम्मी पापा मेरे हैं।

    अक्षत सक्सेना ( 9 वर्ष)