Author: कविता बहार

  • स्वास्थ्य पर सजगता – विनोद सिल्ला

    स्वास्थ्य पर सजगता

    सेहत सुविधा कम हुई, बढ़े बहुत से रोग|
    दाम दवाओं के बढ़े, तड़प रहे हैं लोग||

    अस्पताल के द्वार पर, बड़ी लगी है भीड़|
    रोग परीक्षण हो रहे, सब की अपनी पीड़||

    ऊंचे भवन बना लिए, पैसा किया निवेश|
    दूर हुआ जब प्रकृति से, पनपे सभी कलेश||

    खान-पान बदले सभी, फास्ट-फूड परवान|
    रोगों की भरमार को, झेल रहा इंसान||

    कुदरत का दोहन किया, प्रबल स्वार्थ का भाव|
    कंचन तन रोगी हुआ, डगमग डोले नाव||

    मानव तन उपहार है, कुदरत का अनमोल|
    रखिए इसे सँभाल के, मत कर मिट्टी मोल||

    “सिल्ला” काया साध बन, अपना दीपक आप|
    अपने ज्ञान उजास से, सारे तम को ढाप||

    विनोद सिल्ला©

  • चुगली रस – विनोद सिल्ला

    चुगली रस

    मीठा चुगली रस लगे, सुनते देकर ध्यान।
    छूट बात जाए नहीं, फैला लेते कान।।

    चुगलखोर सबसे बुरा, कर दे आटोपाट।
    नारद से आगे निकल, सबकी करता काट।।

    चुगली सबको मोहती, नर हो चाहे नार।
    चुगली के फल तीन हैं, फूट द्वेष तकरार।।

    चुगली निंदा जो करें, सही नहीं वो लोग।
    चुगल पतन की ओर है, पड़े भोगना सोग।।

    चुगली निंदा से बचो, भली नहीं यह कार।
    चुगलखोर बदनाम रह, मिले नहीं सत्कार।।

    खतरनाक सबसे बड़ी, तुड़वादे यह प्रीत।
    मापदंड सब हारते, चुगली जाती जीत।।

    सिल्ला चुगली छोड़कर, लगा हकीकी नेह।
    अमन चैन माणो सदा, बरसें खुशियां मेह।।

    -विनोद सिल्ला

  • पावस पर कविता – नीरामणी श्रीवास नियति

    पावस पर कविता

    falgun mahina
    फागुन महिना पर हिंदी कविता

    पावस ऋतु अब आ गई , घिरी घटा घनघोर ।
    चमचम चमके दामिनी , बादल करते शोर ।।
    बादल करते शोर , भरे नदिया अरु नाला ।
    चले कृषक खलिहान , लगा कर घर में ताला ।
    नियति कहे कर जोड़ , दिखे ज्यों रात्रि अमावस ।
    अँधियारा चहुँ ओर , घटा छाये जब पावस ।।

    पावन पावस ऋतु सदा , शीतल करती जान ।
    ग्रीष्म ताप के बाद में , गिरे बूँद खलिहान ।।
    गिरे बूँद खलिहान , तृप्त है प्यासी धरती ।
    सूखा हो आकाल , प्यास से जनता मरती ।।
    नियति कहे कर जोड़ , जरा अब बरसो सावन ।
    अगन बुझे हर देह , बूँद से कर दे पावन ।।

    खड़ा हिमालय रोकता , वारिद जल को मान ।
    पेड़ काट नर कर रहा , पर्वत भी बेजान ।।
    पर्वत भी बेजान , इसी से होती वर्षा ।
    पावस देख किसान , खुशी से मन भी हर्षा ।।
    नियति कहे कर जोड़ , देह फिर बने शिवालय ।
    सभी लगाओ पेड़ , कहे नित खड़ा हिमालय ।।

    नीरामणी श्रीवास नियति
    कसडोल छत्तीसगढ़

  • तुम ही तुम हो – माधुरी डड़सेना मुदिता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तुम ही तुम हो

    भावना में बसे हो कामना में तुम्हीं हो ।
    जिंदगी बन गये हो साधना में तुम्हीं हो ।।

    वादियाँ खूबसूरत हर नजारा हंसी है
    ईश की बंदगी में प्रार्थना में तुम्हीं हो ।

    हर गजल में भरे हो गीत की बंदिशों में
    शक्ल आता नजर है आइना में तुम्हीं हो ।

    इक तुम्हीं याद आते क्या करें तुम बताओ
    बेखुदी छा गई है इस अना में तुम्हीं हो ।
     
    हर जनम में मिले हैं नाम अपने जुदा थे
    हीर मैं ही बनी थी राँझना में तुम्हीं हो ।

    तुम ही हो ग्रंथ मेरे मंत्र तुम मंत्रणा भी
    तुम ही विश्वास दिल के हर वफा में तुम्हीं हो ।

    चाँद की चाँदनी में सूर्य की रोशनी में
    इन हवाओं में घुलते हर सदा में तुम्हीं हो ।

    और क्या चाहिए अब हमने सब पा लिया है
    तुम जुनूँ जिंदगी की आशना में तुम्हीं हो ।

    तुम ही भावों की सरिता तुम ही प्रण के हिमालय
    तुम ही मुदिता की मंजिल चाहना में तुम्हीं हो ।


    —- *माधुरी डड़सेना ” मुदिता “*

  • अनजान लोग – नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    अनजान लोग

    कितने अच्छे होते हैं अनजान लोग
    उनको हमसे कोई अपेक्षा नहीं होती
    हमें भी उनसे कोई अपेक्षा नहीं होती

    हम गलत करते हैं
    कि अनजानों से हमेशा डरे डरे रहते हैं
    हर बार अनजान लोग गलत नहीं होते
    फिर भी प्रायः अनजानो से दया करने में कतराते हैं

    हमारे दिल दुखाने वाले प्रायः जान पहचान के होते हैं
    हमें धोखा देने वाले भी प्रायः जान पहचान के होते हैं
    जान पहचान वाले आपसे जलते हैं
    जान पहचान वाले आपसे वादा खिलाफी करते हैं
    जान पहचान वाले आपके पीठ पीछे गंदे खेल खेलते हैं

    मैं उन सारे अनजानो के प्रति आभारी हूं
    जो मेरे जीवन में कभी दखलंदाजी नहीं करते हैं
    वे कभी झूठी सांत्वना देने नहीं आते
    वे कभी बेवजह मेरी प्रशंसा नहीं करते
    वे कभी मेरे रास्ते के रोड़े नहीं बनते हैं
    वे कभी मेरे लिए झूठी मुस्कान नहीं बिखरते
    वे कभी मुझसे प्यार और नफरत नहीं करते

    समाचार पत्र में छपी खबरें प्रायः झूठ होती हैं
    कि किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा चोरी या बलात्कार की गई
    जांच से पता चलता है
    चोर और बलात्कारी हमारे जान पहचान के होते हैं
    इसीलिए मैंने अब अंजानों से डरना छोड़ दिया है
    और जान पहचान वालों से संभलना शुरू कर दिया है

    ऐसा नहीं की मुझे अपनों से प्यार नहीं
    अपनों पर विश्वास नहीं
    मगर मुझे अपनों से खाए धोखे का इतिहास पल पल डराते रहता है
    अपने तो अपने होते हैं यह कहना हमेशा ठीक नहीं होता
    जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं जब अनजान अपने हो जाते हैं
    अनजान कम से कम अपने होने का दिखावा नहीं करते
    अनजान लोगों द्वारा छले जाने पर हमें दुख नहीं होता।

    —नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    9755852479