Author: कविता बहार

  • जिंदगी एक पतंग – आशीष कुमार

    जिंदगी एक पतंग – आशीष कुमार

    उड़ती पतंग जैसी थी जिंदगी
    सबके जलन की शिकार हो गई
    जैसे ही बना मैं कटी पतंग
    मुझे लूटने के लिए मार हो गई

    सबकी इच्छा पूरी की मैंने
    मेरी इच्छा बेकार हो गई
    कहने को तो आसमान की ऊँचाईयाँ मापी मैंने
    चलो मेरी ना सही सबकी इच्छा साकार हो गई

    ऐसा भी ना था कि पाँव जमीन पर ना थे मेरे
    किसी ना किसी से मेरी डोर अंगीकार हो गई
    मगर जमाने भर की बुरी नजर थी मुझ पर
    मुझे काटने के लिए हर पतंग तैयार हो गई

    पंख लगाकर उड़ना था मुझे
    मेरी यह इच्छा स्वीकार हो गई
    जब तक साँस चली उड़ाया गया
    फिर यह जिंदगी मिट्टी में मिलने के लिए लाचार हो गई

    सबको खुशियाँ देता रहा मैं
    मेरी खुशियाँ सब पर उधार हो गई
    हर रंग देखा पल भर की जिंदगी में
    जाते-जाते सबकी यादें बेशुमार हो गई

                            – आशीष कुमार
                             मोहनिया बिहार

  • दोपहर पर कविता – राजेश पांडेय वत्स

    दोपहर पर कविता (छंद -कवित्त )

    छंद
    छंद

    तपन प्रचंड मुख खोजे हिमखंड अब,
    असह्य जलती धरा
    देखे मुँह फाड़ के!

    धूप के थप्पड़ मार पड़े गड़बड़ बड़े,
    पापड़ भी सेक देते
    पत्थर पहाड़ के!

    खौल खौल जाते घरबार जग हाहाकार,
    सिर थाम बैठे सब
    दुनिया बिगाड़ के!

    आहार विहार रघुनाथ मेरे ठीक रखें,
    अब तो भुगत वत्स
    सृष्टि खिलवाड़ के!

    राजेश पाण्डेय वत्स

  • मुख पर कविता – राजेश पांडेय वत्स

    मुख पर कविता -मनहरण घनाक्षरी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    गैया बोली शुभ शुभ, सुबह से रात तक,
    कौआ बोली हितकारी,
    चपल जासूस के!

    हाथी मुख चिंघाड़े हैं, शुभ मानो गजानन,
    सियार के मुख कहे,
    बोली चापलूस के!

    मीठे स्वर कोयल के, बसंत में मधु घोले,
    तोता कहे राम राम,
    मिर्ची रस चूस के!

    राम के भजन बिन, मुख किस काम आये,
    वत्स कहे ब्यर्थ अंग,
    खाये मात्र ठूस के!

    -राजेश पाण्डेय वत्स

  • चिड़िया पर बालगीत – साधना मिश्रा

    चिड़िया पर बालगीत – चुनमुन और चिड़िया

    चिड़िया पर बालगीत - साधना मिश्रा
    बाल कविता

    चुनमुन पूछे चिड़िया रानी,
    छुपकर कहाँ तुम रहती हो?
    मेरे अंगना आती न तुम,
    मुझसे क्यों शर्माती हो?

    नाराज हो मुझसे तुम क्यों?
    दूर – दूर क्यों रहती हो?
    आओ खेलें खेल- खिलौने,
    डरकर क्यों छुप जाती हो?

    चिड़िया उदास होकर बोली,
    मेरा घर बर्बाद किया।
    बाग – बगीचे काट-काटकर,
    अपना घर आबाद किया।

    खुश रहो तुम अपने घर,
    बार – बार क्यों बुलाती हो?
    मेरा तुमने घर छीना है,
    अब क्यों प्यार जताती हो?

    चुनमुन कान पकड़कर बोली,
    मुझसे ये अज्ञान हुआ।
    हरे वृक्ष जीवों के घर हैं,
    आज मुझे ये ज्ञान हुआ।

    हरियाली – खुशहाली लाती है,
    हरियाली हरषाती है।
    हरियाली परिधान पहनकर,
    धरती खुश हो जाती है।

    मिलजुल कर सब संग रहेंगे,
    नए वृक्ष लगाएंगे।
    हरी- भरी ये धरती होगी,
    खुशहाली वापस लाएंगे।

    मत रूठो प्यारी चिड़िया,
    मधुर – मधुर तुम गाती हो।
    अब मुझको तुम क्षमा करो,
    बहुत मुझे तुम भाती हो।

    साधना मिश्रा, रायगढ़, छत्तीसगढ़

  • रसोईघर पर कविता – राजेश पांडेय वत्स

    रसोईघर पर कविता (छंद-मनहरण घनाक्षरी)

    छंद
    छंद

    अँगीठी माचीस काठ,कंडा चूल्हा और राख,
    गोरसी सिगड़ी भट्टी,
    *देवता रसोई के!*

    सिल बट्टा झाँपी चक्की,मथनी चलनी चौकी,
    कड़ाही तसला तवा,
    *वस्तु कोई-कोई के!*

    केतली कटोरा कुप्पी,बर्तन मूसल पीढ़ा,
    गिलास चम्मच थाली,
    *रखे सब धोई के!*

    मटका सुराही घड़ा,ढक्कन चम्मच बड़ा,
    कोना बाल्टी सजा वत्स,
    *भवन नंदोई के!*

    -राजेश पाण्डेय वत्स