Author: कविता बहार

  • विश्व रंगमंच दिवस पर प्रियदर्शन की कविता

    World Theatre Day: विश्व रंगमंच दिवस हर साल 27 मार्च को मनाया जाता है. विश्व रंगमंच दिवस उत्सव एक ऐसा दिन है जो रंगमंच को समर्पित है.

    विश्व रंगमंच दिवस पर प्रियदर्शन की कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    कुर्सियां लग चुकी हैं
    प्रकाश व्यवस्था संपूर्ण है
    माइक हो चुके हैं टेस्ट
    अब एक-एक फुसफुसाहट पहुंचती है प्रेक्षागृह के कोने-कोने में

    तैयार है कालिदास
    बस वस्त्र बदलने बाकी हैं
    मल्लिका निहारती है अपने बादल केश
    तनिक अंधेरे ग्रीन रूम के मैले दर्पण में
    बेचैन है विलोम
    अपने हिस्से के संवाद मन ही मन
    दुहराता हुआ
    और सिहरता हुआ अपने ही प्रभाव से
    खाली प्रेक्षागृह को आकर देख जाती है अंबिका
    अभी अंधेरा है मंच
    कुछ देर बाद वह यहीं सूप फटकारेगी
    और आएगी भीगी हुई मल्लिका
    लेकिन थोड़ी देर बाद

    अभी तो मंच पर अंधेरा है
    और सुनसान है प्रेक्षागृह
    धीरे-धीरे आएंगे दर्शक
    कुर्सियां खड़खड़ाती हुई भरेंगी
    बातचीत के कुछ टुकड़े उभरेंगे
    और सहसा मंद पड़ जाएंगे
    कोई पुरुष किसी का हाल पूछेगा
    कोई स्त्री खिलखिलाएगी
    और सहसा चुप हो जाएगी
    अपनी ही प्रगल्भता पर खुद झेंपकर

    नाटक से पहले भी होते हैं नाटक
    जैसे कालिदास बार-बार लौट कर जाता है
    मंच पर घूमता है ऑथेलो
    पुट आउट द लाइट
    पुट आउट द लाइट
    मैकबेथ अपनी हताशा में चीखता है
    बुझ जाओ नश्वर मोमबत्तियों

    प्रेक्षागृह की तनी हुई दुनिया में
    सदियां आती-जाती हैं
    दीर्घा की चौथी कतार की पांचवीं कुर्सी पर
    बैठी स्त्री छींकती है
    और सहसा एक कड़ी टूट जाती है

    सबके ऊपर से बह रहा है समय
    सब पर छाया है संवादों का उजास
    सबके हाथ सबके हाथों को छूते हैं
    नमी है और कंपकंपाहट है
    मंच पर ऑथेलो है
    मगर ऑथेलो के भीतर कौन है?
    कौन है जो उसे देख रहा है दर्शक दीर्घा से
    और अपने मन की परिक्रमा कर रहा है
    क्या वह पहचान रहा है
    अपने भीतर उग रहे ईर्ष्यांकुर को?

    सबका अपना एकांत है
    सबके भीतर बन गए हैं प्रेक्षागृह
    सबके भीतर है एक नेपथ्य
    एक ग्रीन रूम, जिसमें मद्धिम सा बल्ब जल रहा है
    और आईने पर थोड़ी धूल जमी है
    सब तैयार हैं
    अपने हिस्से के अभिनय के लिए
    सबके भीतर है ऑथेलो
    अपनी डेसडिमोना के क़त्ल पर विलाप करता हुआ
    विलोम से बचता हुआ कालिदास

    जो कर रहे हैं नाटक
    उन्हें भी नहीं है मालूम
    कितनी सदियों से चल रहा है यह शो
    तीन घंटों में कितने सारे वर्ष चले आते हैं
    जब परदा खिंचता है और बत्तियां जलती हैं
    तो एक साथ
    कई दुनियाएं झन्न से बुझ जाती हैं

  • प्रकृति विषय पर दोहे

    प्रकृति विषय पर दोहे

    प्रकृति विषय पर दोहे


    सूरज की लाली करें,इस जग का आलोक।
    तन मन में ऊर्जा भरे,हरे हृदय का शोक।।

    ओस मोतियन बूँद ने,छटा बनाकर धन्य।
    तृण-तृण में शोभित हुई,जैसे द्रव्य अनन्य।।

    डाल-डाल में तेज है, पात-पात में ओज।
    शुद्ध पवन पाता जगत,हरियाली में रोज।।

    उड़कर धुंध प्रभात में,भू पर शीत बिखेर।
    पुण्य मनोरम दृश्य से,लिया जगत को घेर।।

    झूम रहे तरुवर लता,सुरभित कर संसार।
    कोहिनूर तरु रोपकर,कर भू का श्रृंगार।।


    रचनाकार – डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”

  • कर्म पर हिंदी में कविता

    श्रृंगार छन्द में एक प्रयास सादर समीक्षार्थ

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    कर्म पर हिंदी में कविता

    कर्म का सभी करेंआह्वान।
    कृष्ण का ये है गीता ज्ञान।
    कर्मबिन होतभाग्य से हीन।
    सृष्टि में होत वही है दीन।।

    कर्म जो करे सदा निष्काम।
    पाय वह शांति औरआराम।
    आत्म मेंही स्थित हो हरप्राण।
    ब्रह्म में पा लेता है त्राण।।

    सृष्टि में रहता जो आसक्त।
    भोग में लिप्त रहे हर वक्त।
    बंधनों से होत न वह मुक्त।
    सृष्टि में ना ही वहउपयुक्त।

    कर्मफल से बनता है भाग्य।
    कर्म होशुभ मिलता सौभाग्य।
    त्याग देता है जो अभिमान।
    सत्य का हो जाता है ज्ञान।।


    जान लेता है जो भी कर्म।
    साथ हीअकर्मऔर विकर्म।
    सृष्टि की आवाजाही बंद।
    मुक्त हो जीवन का हर फंद।

    जीतता इन्द्रियसकलसमूह।
    होत ना उसे कर्म प्रत्यूह।
    कर्म से होता जीवन्मुक्त।
    जीव होत है ब्रह्म संयुक्त।।

    कर्म ही जीवन काआधार।
    कर्म ही रचता है संसार।
    कर्म तो करोसभी निष्काम।
    जीव पा जाता है विश्राम।।

    ©डॉ एन के सेठी

  • शिव महाकाल पर कविता – बाबू लाल शर्मा

    हे नीलकंठ शिव महाकाल

    भक्ति गीत- हे नीलकंठ शिव महाकाल (१६,१४मात्रिक)

    हे नीलकंठ शिव महाकाल,
    भूतनाथ हे अविनाशी!
    हिमराजा के जामाता शिव,
    गौरा के मन हिय वासी!

    देवों के सरदार सदाशिव,
    राम सिया के हो प्यारे!
    करो जगत कल्याण महा प्रभु,
    संकट हरलो जग सारे!
    सागर मंथन से विष पीकर,
    बने देव हित विश्वासी!
    हे नीलकंठ शिव महाकाल,
    भूतनाथ हे अविनासी!

    भस्म रमाए शीश चंद्र छवि,
    गंगा धारा जट धारी!
    नाग लिपटते कंठ सोहते,
    संग विनायक महतारी!
    हे रामेश्वर जग परमेश्वर,
    कैलासी पर्वत वासी!
    हे नीलकंठ शिव महाकाल,
    भूतनाथ हे अविनाशी!

    आँक धतूरे भंग खुराकी,
    कृपा सिंधु अवढरदानी!
    वत्सल शरणागत जग पालक,
    त्रय लोचन अविचल ध्यानी!
    आशुतोष हे अभ्यंकर हे,
    विश्वनाथ हे शिवकाशी!
    हे नीलकंठ शिव महाकाल,
    भूतनाथ हे अविनाशी!


    ✍©
    बाबू लाल शर्मा बौहरा
    सिकंदरा दौसा राजस्थान

  • महादेवी वर्मा पर कविता- बाबूलाल शर्मा

    महादेवी वर्मा पर कविता- बाबूलाल शर्मा

    महादेवी वर्मा पर कविता- बाबूलाल शर्मा

    व्यक्तित्व विशेष कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    छायावादी काल में, हुए चार कवि स्तंभ।
    महा महादेवी हुई, एक प्रमुख थी खंभ।।

    सन उन्नीस् सौ सात में, माह मार्च छब्बीस।
    जन्म फर्रुखाबाद में, फलित कृपा जगदीश।।

    इन्हे आधुनिक काल की, मीरा कह उपनाम।
    करे प्रशंसा लोग सब, किए काव्य हितकाम।।

    कहे निराला जी बहिन, सरस्वती नव नाम।
    भाई सम रखती उन्हे, विपदा में कर थाम।।

    उपन्यास लिखती कभी, कथा कहानी गीत।
    नारायण वर्मा सुजन, पति साथी मन मीत।।

    दीपशिखा अरु नीरजा, सांध्यगीत नीहार।
    रश्मि सप्तपर्णा रची, चकित हुआ संसार।।

    काव्य अग्निरेखा रचे, और प्रथम आयाम।
    रेखा चित्रों में रचित, संस्मरण सुख धाम।।

    भाषण और निबंध के, लिखे संकलन अन्य।
    गौरा गिल्लू की कथा, पढ़कर हम सब धन्य।।

    दीप गीत नीलांबरा, यामा में लिख गीत।
    परिक्रमा अरु सन्धिनी, गीतपर्व शुभ प्रीत।।

    मिला पद्म भूषण उन्हे, ज्ञान पीठ सम्मान।
    पद्म विभूषण भी मिला, बनी हिंद पहचान।।

    माह सितम्बर में गए, ग्यारह दिवस प्रयाग।
    सन सत्यासी में मिला, स्वर्ग वास अनुराग।।

    नमन करें मन भाव से, वंदन सहित सुजान।
    शर्मा बाबू लाल कवि, विज्ञ लिखे शुभ मान।।

    बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ
    निवासी – सिकंदरा, दौसा
    राजस्थान ३०३३२६