Author: कविता बहार

  • हिंदी कविता-ज्योति यह जले

    ज्योति यह जले

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    सूत्र संगठन सँभाल, ज्योति यह जले।
    कोटि-कोटि दीप-माल ज्योति यह जले।


    राष्ट्र अंधकार के विनाश के लिए,
    चिर अतीत के धवल प्रकाश के लिए।
    बुद्धि के, विवेक के विकास के लिए
    वृद्धि के समृद्धि के प्रयास के लिए।
    त्याग की लिए मशाल, ज्योति यह जले। सूत्र संगठन…


    राष्ट्र की अखण्ड साधना अमर बने,
    प्राण-प्राण-कंठ की पुकार एक हो।
    राष्ट्र की नवीन कल्पना सँवारने,
    योजनानुसार पुण्य सर्जना घने।
    ले विमुक्ति गर्व भाल, ज्योति यह जले।सूत्र संगठन…


    कोटि-कोटि कंठ की पुकार एक हो,
    कोटि-कोटि बुद्धि का विचार एक हो।
    कोटि-कोटि प्राण का श्रृंगार एक हो,
    एक ध्येय और जीत-हार एक हो।
    राष्ट्र को बना निहाल, ज्योति यह जले। सूत्र संगठन…



    एक बार दुग्ध से स्वदेश महमहा उठे,
    एक बार फिर बहार लहलहा उठे।
    यश-सुगन्धि से स्वदेश महमहा उठे,
    राष्ट्र का विजय निशान गहगहा उठे।
    जगमगा विशाल भाल, ज्योति यह जले। सूत्र संगठन…

  • हिंदी कविता-जन्म चाहिए प्यारे हिन्दुस्तान में

    जन्म चाहिए प्यारे हिन्दुस्तान में

    भारत


    एक हमारी छोटी विनती, भगवन ! रखना ध्यान में,
    हमें हमेशा पैदा करना, प्यारे हिन्दुस्तान में ॥


    सिर पर है हिम मुकुट सलोना, कंठहार गंगा-यमुना,
    हरियाली की चादर मनहर, फूल – फलों का है गहना।
    चन्दन भरी हवा लहराती, प्यारे हिन्दुस्तान में ॥ एक हमारी

    राम-कृष्ण की जन्मभूमि यह, वीर भगत की यह धरती,
    रानी झाँसी और पद्मिनी की गाथा दुनियां कहती।
    राणा और शिवाजी जन्मे प्यारे हिन्दुस्तान में। एक हमारी

    तन तज कर हम स्वर्ग में जायें, इसकी हमको चाह नहीं,
    बनें मनुज चाहे पशु-पक्षी, इसकी भी परवाह नहीं।
    जो भी बनें, बनें हम अपने प्यारे हिन्दुस्तान में। एक हमारी

    मिले हमें सोना – चाँदी या मिले हमें हीरा मोती,
    या कुबेर का मिले खजाना, कभी नहीं इच्छा होती।
    हम फूटी कौड़ी पाकर खुश प्यारे हिन्दुस्तान में॥ एक हमारी

    नहीं चाहिए वस्त्र रेशमी, नहीं चाहिए आभूषण,
    नहीं चाहिए महल-अटारी, नहीं चाहिए सिंहासन।
    हमको केवल जन्म चाहिए प्यारे हिन्दुस्तान में॥ एक हमारी

    इसके पैरों की माटी अपने माथे का टीका है,
    इसके एक घुट पानी के आगे अमृत फीका है।
    मुझे घास की रोटी अच्छी प्यारे हिन्दुस्तान में ॥ एक हमारी

  • रिश्ते नाते (कुण्डलिया )- माधुरी डडसेना

    रिश्ते नाते (कुण्डलिया )- माधुरी डडसेना

    भाई-बहन


    नाते गढ़ने के लिए , रचने पड़ते स्वांग ।
    बार बार हैं जाँचते , कहता क्या पंचांग ।।
    कहता क्या पंचाग , बनी उत्सुकता भारी ।
    करते तिकड़म सर्व , कठिन करते तैयारी ।।
    मुदिता भर मुस्कान , शून्य फल लेकर आते ।
    कभी कहीं बन मीत , निभाते अपने नाते ।।


    नाते देखे हैं बहुत , भरा कूट कर स्वार्थ ।
    हुआ महाभारत यहाँ , कृष्ण कहे सुन पार्थ ।।
    कृष्ण कहे सुन पार्थ , स्वार्थ ही करता अंधा ।
    इसी सिद्धि के हेतु , मनुज मन रचता धंधा ।।
    मुदिता भर मुस्कान , रिक्त ही सब हैं जाते ।
    फिर कैसा संबंध , दिखावे के सब नाते ।।


    नाते ऐसे बाँधिए , जैसे फूल सुगन्ध ।
    महके दिल का आँगना , झरे प्रेम रस रन्ध ।।
    झरे प्रेम रस रन्ध , स्वार्थ तज प्रीत बढ़ायें ।
    अपनापन आभास , सदा यह रीत निभायें ।
    मुदिता भर मुस्कान , चले फिर हँसते गाते ।
    मधुर सुखद सम्बंध , यही हैं रिश्ते नाते ।।


    माधुरी डड़सेना ” मुदिता ”
    भखारा

  • श्री विष्णु जी प्रार्थना

    श्री विष्णु जी प्रार्थना

    श्री विष्णु जी प्रार्थना


    लीला-भेदों से हुआ,
    नाम -भेद और रूप।
    महाविष्णु ,ब्रह्मा सहित ,
    दिखते सभी अनूप।।
    पूजें आस्थावान सब,
    राम -कृष्ण, शिव-शक्ति ।
    देवी, सूर्य, गणेश मे,
    होती निष्ठा -भक्ति।।
    नाम, रूप हो इष्ट के,
    पूजा विधि अनुसार।
    सुखी देव पर आस्था,
    मे प्रभु ही आधार।।
    ऐसी ही हो धारणा,
    तो सबका सम्मान।
    एक इष्ट आराधना,
    से पाते सब मान।।
    यदि हम पूजें विष्णु जी ,
    करें नाम का जाप।
    राम-कृष्ण -शिव पा रहे,
    पूजा अपने आप।।
    राम-कृष्ण -शिव पूजने,
    से पूजा पर होम।
    मिल जाता श्री विष्णु को,
    पहुँचाता है व्योम।।
    जैसे हर सरिता बहा,
    अपने निर्मल नीर।
    सागर मे पहुँचा रही,
    रखे सिंधु गंभीर ।।
    इसी तरह कर प्रार्थना,
    श्री विष्णू जी नित्य।
    सबकी स्वीकारें सदा,
    यथा रश्मि आदित्य।।
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    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर
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  • बहार शब्द पर दोहा

    बहार शब्द पर दोहा


    रंग बिरंगे फूल से ,
                छाए बाग बहार ।
    भौरें भी मदमस्त हो ,
               झूमे मगन अपार ।।

    रखें भरोसा ईश पर ,
                 जीवन हो उजियार ।
    सदा प्रतिष्ठा मान से ,
                 छाए हर्ष बहार ।।

    घर में खुशी बहार है ,
                   अपने भी हैं साथ ।
    करे दिखावा प्रेम का ,
                   पकड़ रखे हैं हाथ ।।

    वन में आज बहार है ,
                   तरुवर कर श्रृंगार ।
    टेसू की ये लालिमा ,
                   करे बाग मनुहार ।।

    कर्म विजय का ध्येय धर ,
                  छाए देश बहार ।
    कहे रमा ये सर्वदा ,
                  सफल बने संसार ।।

                 मनोरमा चन्द्रा “रमा”
                     *रायपुर (छ.ग.)*