Author: कविता बहार

  • हिंदी संग्रह कविता-वह जीवन भी क्या जीवन है

    वह जीवन भी क्या जीवन है

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    वह जीवन भी क्या जीवन है, जो काम देश के आ न सका।
    वह चन्दन भी क्या चन्दन है, जो अपना वन महका न सका।


    जिसकी धरती पर जन्म लिया, जिसके समीर से श्वास चली
    जिसके अमृत से प्यास बुझी, जिसकी माटी से देह पली।


    वह क्या सपूत जो जन्मभूमि के, प्रति कर्तव्य निभा न सका।
    वह जीवन भी क्या जीवन है, जो काम देश के आ न सका।

    मुनिवर दधीचि हो गये अमर जिनकी हड्डियों से बज्र बना।
    संकट समाज का दूर किया देकर पावन शरीर अपना।
    वह मानव क्या समाज के हित, निज प्राण प्रसून चढ़ा न सका।
    वह जीवन भी क्या जीवन


    ऐसे महान् चाणक्य जिन्होंने, चन्द्रगुप्त का सृजन किया।
    अन्यायी राजा को रौंदा, यूनानी शत्रु भगा दिया।
    वह नाविक क्या जो तूफानों में, नौका पार लगा न सका।
    वह जीवन भी क्या जीवन


    राणा का जीवन जीवन था, जिसने महलों को छोड़ दिया।
    रोटियाँ घास की खा वन में, आजादी का संघर्ष किया।
    वह देश प्रेम क्या देश प्रेम जो, कंटक पथ अपना न सका।
    वह जीवन भी क्या जीवन

  • हिंदी संग्रह कविता-हमारे प्यारे हिन्दुस्तान

    हमारे प्यारे हिन्दुस्तान


    हमारे प्यारे हिन्दुस्थान, हमारे भारतवर्ष महान ॥
    जननी तू जन्मभूमि है, तू जीवन तू प्राण ।
    तू सर्वस्व शूरवीरों का, जगती का अभिमान ॥ हमारे प्यारे


    उष्ण रक्त अगणित अरियों का, बार-बार कर पान।
    चमकी है कितने युद्धों में, तेरी तीक्ष्ण कृपाण ॥ हमारे प्यारे


    जौहर की ज्वाला में जिनकी, थी अक्षय मुस्कान।
    धन्य वीर बालाएँ तेरी, धन्य-धन्य बलिदान॥ हमारे प्यारे


    तेरी गौरवमयी गोद का रखने को सम्मान।
    करते रहे सपूत निछावर, हँसते-हँसते प्राण। हमारे प्यारे


    जब तक जीवित हैं हम, तेरी वीर-व्रती सन्तान।
    ऊँचा मस्तक अजर-अमर है, तेरा राष्ट्र निशान।


    हमारे प्यारे हिन्दुस्तान, हमारे भारतवर्ष महान॥

  • हिंदी संग्रह कविता-हम सब भारतवासी हैं

    हम सब भारतवासी हैं


    हम पंजाबी, हम गुजराती, बंगाली, मद्रासी हैं,
    लेकिन हम इन सबसे पहले केवल भारतवासी हैं।
    हम सब भारतवासी हैं।


    हमें प्यार आपस में करना पुरखों ने सिखलाया है,
    हमें देश-हित, जीना-मरना, पुरखों ने सिखलाया है!
    हम उनके बतलाये पथ पर, चलने के अभ्यासी हैं!
    हम सब भारतवासी हैं!


    हम बच्चे अपने हाथों से, अपना भाग्य बनाते हैं,
    मेहनत करके बंजर धरती से सोना उपजाते हैं!
    पत्थर को भगवान बना दें, हम ऐसे विश्वासी हैं!
    हम सब भारतवासी हैं!


    वह भाषा हम नहीं जानते, बैर-भाव सिखलाती जो,
    कौन समझता नहीं, बाग में बैठी कोयल गाती जो!
    जिसके अक्षर देश-प्रेम के, हम वह भाषा-भाषी हैं!
    हम सब भारतवासी हैं।

  • हिंदी संग्रह कविता-हम करें राष्ट्र-आराधन

    हम करें राष्ट्र-आराधन


    हम करें राष्ट्र-आराधन, तन से, मन से, धन से।
    तन, मन, धन, जीवन से, हम करें राष्ट्र-आराधन॥


    अंतर से, मुख से, कृति से, निश्चल हो निर्मल मति से।
    श्रद्धा से, मस्तक -नत से, हम करें राष्ट्र-अभिवादन ।।


    अपने हँसते शैशव से, अपने खिलते यौवन से।
    प्रौढ़तापूर्ण जीवन से, हम करें राष्ट्र का अर्चन ।।


    अपने अतीत को पढ़कर, अपना इतिहास उलटकर।
    अपना भवितव्य समझकर, हम करें राष्ट्र का चिंतन ॥


    हैं याद हमें युग-युग की, जलती अनेक घटनाएँ।
    जो माँ के सेवा-पथ पर, आईं बनकर विपदाएँ।


    हमने अभिषेक किया था, जननी का अरि-शोणित से।
    हमने शृंगार किया था, माता का अरि-मुण्डों से॥


    हमने ही उसे दिया था, सांस्कृतिक उच्च सिंहासन ॥
    माँ जिस पर बैठी सुख से, करती थी जग का शासन ॥


    जब काल – चक्र की गति से, वह टूट गया सिंहासन ।
    अपना तन-मन-धन देकर, हम करें पुन: संस्थापन॥


    हम करें राष्ट्र-आराधन, तन से, मन से, धन से

  • हिंदी संग्रह कविता- सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी

    सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी

    सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी जागो मेरे सोने वाले!
    जब सारी दुनिया सोती थी तब तुमने ही उसे जगाया
    दिव्य गान के दीप जलाकर तुमने ही तम दूर भगाया,
    तुम्हीं सो रहे, दुनिया जगती यह कैसा मद है मतवाले।

    गंगा-यमुना के कूलों पर, सप्त सौध थे खड़े तुम्हारे,
    सिंहासन था, स्वर्ण छत्र था, कौन ले गया हर वे सारे?
    टूटी झोंपड़ियों में अब तो जीने के पड़ रहे कसाले!

    भूल गये क्या रामराज्य वह जहाँ सभी का सुख था अपना,
    वे धन धान्य पूर्ण गृह अपने आज बना भोजन भी सपना,
    कहाँ खो गये वे दिन अपने किसने तोड़े घर के ताले?


    भूल गये वृन्दावन मथुरा भूल गए क्या दिल्ली झाँसी?
    भूल गए उज्जैन अवन्ती भूले सभी अयोध्या काशी?
    यह विस्मृति की मदिरा तुमने कब पी ली मेरे मतवाले!


    भूल गये क्या कुरुक्षेत्र वह जहां कृष्ण की गूंजी गीता
    जहाँ न्याय के लिए अचल हो, पांडु-पुत्र ने रण को जीता,
    फिर कैसे तुम भीरु बने हो तुमने रण-प्रण के व्रत पाले!


    याद करो अपने गौरव को थे तुम कौन, कौन हो अब तुम
    राजा से बन गए भिखारी, फिर भी मन में तुम्हें नहीं गम
    पहचानो फिर से अपने को, मेरे भूखों मरने वाले।


    जागो हे पांचाल निवासी! जागो हे गुर्जर मद्रासी!
    जागो हिन्दू मुगल मरहठे, जागो मेरे भारतवासी!
    जननी की जंजीरें बजती, जगा रहे कड़ियों के छाले।
    सुना रहा हूँ तुम्हें..