Author: कविता बहार

  • 1मार्च शून्य भेदभाव दिवस पर कविता / मनीभाई नवरत्न

    1मार्च शून्य भेदभाव दिवस पर कविता / मनीभाई नवरत्न

    1मार्च शून्य भेदभाव दिवस पर कविता / मनीभाई नवरत्न

    शून्य भेदभाव दिवस पर, हम एक हो जाएँ ,
    पूरा विश्व एकजुट, सुबह के सूरज के नीचे।
    करते हैं आवाज़ बुलंद और स्पष्ट ,
    नफ़रत को और न कहने के लिए,

    भय को दूर करने के लिए।

    1मार्च शून्य भेदभाव दिवस पर कविता / मनीभाई नवरत्न

    हम सब एक जैसे हैं, त्वचा के नीचे खून से
    कोई जाति नहीं, कोई धर्म या रिश्तेदार नहीं।
    इंसान हैं हम सभी, जो पैदा होते हैं,
    प्यार करने के लिए , आनंद पाने के लिए ।

    अब विभाजनकारी दीवारों के ख़िलाफ़ खड़े होंगे,
    वे बाधाएँ जो हमें अंदर से अलग रखती हैं।
    हम भेदभाव की ताकत की जंजीरें तोड़ देंगे,
    और न्याय पर प्रकाश डालेंगे , उज्ज्वल चमकेंगे ।

    अपनी मतभेदों को स्वीकार करते हुए ,
    विविधता की सुंदरता को अपनाएंगे।
    हम स्वतंत्र होंगे तभी मजबूत होंगे ,
    आओ, हम वह बदलाव लाकर दिखाएँ ।

    हर्षोल्लास हृदय के साथ आगे बढ़ें,
    दिलों में आशा और हवा में प्यार ।
    इस दिन के लिए, हम सब एक होकर खड़े होंगे,
    पाने को शांति की एक दुनिया ,

    जहां सब कुछ एक हो जाए।

    मनीभाई नवरत्न

  • कविता : छत्तीसगढ़ के धरना का इतिहास पर चौपाई / आशा आज़ाद

    कविता : छत्तीसगढ़ के धरना का इतिहास पर चौपाई / आशा आज़ाद

    कविता : छत्तीसगढ़ के धरना का इतिहास पर चौपाई / आशा आज़ाद 

    छत्तीसगढ़ कविता
    छत्तीसगढ़ कविता

    सन् 1995 से पृथक राज्य अखंड धरना आंदोलन प्रारंभ 

    आज सुनाऊँ सुनलो गाथा।सुनकर झुक जाता है माथा।

    राज्य पृथक जो आज कहाया।धरना आदोंलन से आया।।

    नौ अप्रैल की घटना जाने।सन उन्नीस पंचानवे माने।

    दशम दिसंबर हुआ समापन। हुए प्रफुल्लित मानब जन जन।।

    धरना के संस्थापक जानें।उदयभान सिह हैं पहचाने।

    गौड़ रूप चौहान कहाते।बनकर मुखिया धर्म निभाते।।

    सन पंचानवें दिवस आया ।शुभम पत्र संकल्प भराया।

    पंचम सौ जन मनुज वहाँ थे।एकत्रित सब लोग जहाँ थे।

    मूलचंद वाढ़रे कहाते।झंडा विशाल स्थल फहराते ।

    पंद्रह अप्रैल दिवस जानें।नरसिह मंडल साथी मानें।।

    बत्तीसहवें दिन का धरना।ठाना संकल्प पत्र भरना ।

    ज्ञापन सौंपा माँग दिखाया।आस राष्ट्रपति से शुभ पाया।।

    शास्त्री कहते चौक जहाँ पर।धरना उपवन दिया वहाँ पर।

    यज्ञ दिग्विजय श्रेष्ठ चलाया।निज विरोध आवाज उठाया ।

    फिर छ: अगस्त का दिन आया।दीपक तब छत्तीस जलाया।

    है द्वितीय तब सत्र कराया।गीत पांडवानी शुभ भाया ।।

    कीर्तीभूषण पांडे जानें।भारतीय मंत्री को मानें।

    मुख्य अतिथि रह जोर लगाया।राज्य पृथक हो माँग बताया।।

    जब दिन इक्कीस मार्च आया।घड़ी चौक में दल घबराया।

    धारा विरोध एक लगाया।फिर आंदोलन अति गरमाया।।

    नया मिशन सुंदर कहलाया।जय छत्तीसगढ़ शुभे आया।

    उदयभान मजदूर सुनेता।आंदोलन के श्रेष्ठ प्रणेता।।

    आर्य नंदकुमार कहाये।दत्त त्रिपाठी भी सह आये ।

    भट्टाचार्या आसीत वहाँ थे।धरना स्थल को चुनें जहाँ थे।।

    सत्याग्रह का ध्येय बनाया।एक दिवस परचम लहराया।

    नैय्यर रमेश जी भी आये।मंच तिरंगा को फहराये।।

    तीन शतम का धरना जानो।थे पंजाब सुनेता मानों।

    नाम सिंह सुरजीत कहाये।धरना की ओ शान बढ़ाये।

    जय शुभ छत्तीसगढ़ बनाये।संयोजक उदयभान आये।

    मुखिया दामोदर कहलाये।नव अखंड परचम लहराये।।

    साल शतम छब्बीसी जानें।चला मुक्ति मोर्चा नव मानें ।।

    लगा एक चौवालिस धारा।बनें शेख अंसार सहारा।।।

    मुखिया अडवाणी जी आये।साहस का परचम लहराये।

    कहे रायपुर हो रजधानी।हर जन की यह होवे बानी।।

    दिवस मार्च तेइस शुभ आया।सन संतावन सत्र कहाया।

    फौज एक आजाद बनाया। शिवसेना ने हाथ बढ़ाया।।

    जून 1999 का आंदोलन

    उदयभान संयोजक रहकर।चले सदा साहस के पथ पर।

    गाँव नगर में दौरा करना।पृथक राज्य जन साहस भरना।।

    धरना अखंड फिर गरमाया।ग्रामवासियों को सुध आया।।

    मधुसूदन मिश्रा जी आये।रामरतन जन जोश जगाये।।

    पंद्रह अगस्त ध्वज फहराया।आंदोलन को सख्त बनाया।।

    दिन था वो भी बीस जुलाई | विद्याचरण करे अगुवाई।।

    मीना यादव राधा बाई।ढोल संग में की अगुवाई।

    देवबती अरु जनक कुमारी।योगदान को आई नारी।।

    गूँज उठा बस एक ही नारा।राज्य पृथक बस होय हमारा।

    अब तो अपना राज्य बनाओ।वादे को अब पूर्ण निभाओ ||

    दो हजार के दिन को जानो।तीस मार्च तिथि थी वह मानो।

    ज्ञापन भेजा फैक्स सहारे।अटल बिहारी को जन सारे।।

    सत्याग्रह धरना था जारी।जेल भरो में स्थल था तारी।।

    हमें राज्य नव दो गरमाया।अटल बिहारी तक पहुँचाया।।

    बाइस फरवरी दिवस में जारी।बात उठा यह बारी बारी।

    सांसद पद कार्य रंगराजन।बात उठाया राज्य विभाजन।।

    तेरह विधायकों ने छेड़ा।राज्य पृथक पर हुआ बखेड़ा।

    शांति रूप से मत यह आया।पृथक राज्य पर बहुमत पाया।

    महानदी के देख किनारे।जय जय के नित गूँजे नारे।

    सत्रह अप्रैल हर्ष लाया। जन जन ने परचम लहराया ।।

    हुआ महासम्मेलन सुंदर।खुशियाँ हर जन जन के अंदर।

    चौदह सौ इक्यासी दिन का। था अखंड धरना वो जन का।।

    30 जनवरी 2000 का अखंड धरना

    तीस जनवरी का दिन आया।पुनः अटल को पत्र थमाया।

    लोकसभा इक्तीस जुलाई।पृथक राज्य पारित अति भाई।।

    ध्वनिमति से पारित लाया।पृथक राज्य ऐलान कराया।

    था पैंतीस वर्ष का धरना।समारोह फिर मिलकर करना।।

    वो चौबीस जून था जानें।विद्या जी भी सह थे मानें।

    भागीरथ जो शुभ कहलाये।उदयभान सिह काज सुहाये।।

    पावन तिथि चौबीस जुलाई। संसद घेरा बात उठाई ||

     वीसी शुक्ला प्रमुख सहारे।साथ लगाया बुलंद नारे।

    दिन था वो पच्चीस जुलाई।शाम चार खबरें शुभ आई।

    मुँहर विधेयक सम्मुख आया।जन जन ने फिर हर्ष मनाया।।

    वो अगस्त बिस का अभिनंदन।समारोह में आए जन जन।

    श्री हरिप्रेम बघेल आये।डाक्टर दुर्गा मान बढ़ाये।।

    वो अगस्त पच्चीस सुहाया।मंजूरी से मन हर्षाया।

    साठ दिनों में मत आएगा।राज्य पृथक अब कहलाएगा।

    घड़ी चौंक में वृहद नजारा।सहयोगी को वह दिन प्यारा।

    धरना अखंड साथ चलाया।पृथक राज्य पारित शुभ पाया।

    उदयभान सिह सह सहयोगी।पृथक राज्य ही मंजिल होगी।

    संयोजक के पद पर चलकर।धर्म निभाया हर पथ रहकर।।

    1 नवंबर 2000 को पृथक राज्य की घोषणा

    नौ अगस्त को अटल बिहारी।एक विधेयक करके जारी।

    पेश किया इक्तीस जुलाई। सभी जनों ने आस लगाई।

    दिवस ऐतिहासिक वो मानें। तप जन जन ने की थी जानें।

    एक नवंबर ध्वज लहराया।पृथक राज्य का बिगुल बजाया।

    महामहिम ने दी मंजूरी।आस हुई थी सबकी पूरी ||

    धरना अखंड सफल बनाया।हर जन को यह दिन था भाया।।

    क्रम था छब्बीसवां हमारा ।अटल बने शुभ उदय सहारा।

    अटल बिहारी कसम निभाये।अंठावन का वचन निभाये।।

    अटल बिहारी भाषण बोलें।संघर्षो को सुंदर तोलें।

    पाँच वर्ष का ध्येय निराला।तप अखंड जन गाने वाला।।

    हर जन जन ने खुशी मनाई।पृथक राज्य की महिमा गाई।

    ढोल नगाड़ा खूब बजाया।मंदिर में भी माथ नवाया।।

    पाँच वर्ष की अमिट कहानी।जन्मों तक यह रहे जुबानी।

    राज्य बना था कैसे अपना।तप अखंड से पूरा सपना।।

    आशा लिखती अखंड गाथा।सुनकर झुक जाता है माथा।

    याद श्रेष्ठ इतिहास  रहेगा।संघर्षों को मनुज पढ़ेगा।।

    संयोजक अरु सब सहयोगी।आम मनुज सह जन उद्योगी।

    गाँव गली के चक्कर काटे।घर घर अखंडता शुभ बाँटे।।

    दसम दिसंबर कार्य समापन।राज्यपाल को सौंपा ज्ञापन।

    सह अजीत जोगी का आना। मिलजुल सुंदर खुशी मनाना।

    महापौर थे तरुण चटर्जी।उन्हें बुलाया देकर अर्जी।

    सराहना कर मान बढ़ाया।शुभे समापन दिन हर्षाया।।

    मुरलीधर नेताम पधारे।पत्रकार भी आये सारे।

    श्री प्रमोद ताम्रकार आये।सुंदर लेखन उनका भाये।।

    आये प्रमोद जोगी स्थल पर।उदयभान का हाथ पकड़कर।

    भागीरथ यह जानें सच्चा।इसे पढ़ेगा बच्चा बच्चा।।

    बीबी पुत्री बच्चा खोया।सुनकर हर जन था नित रोया।

    पाँच वर्ष से डटे रहे थे।पीड़ा कितनी बार सहे थे।।

    शुभ निर्माण धरा जो सपना।पृथक राज्य यह नव है अपना।

    स्वर्ण रूप की अमिट कहानी।राज्य बना आदर्श निशानी।।

    स्वाभिमान का अलख जगाया। शुभ संस्थान नाम हर्षाया।।

    नव यह छत्तीसगढ़ हमारा।समता होगा एक अधारा।।

    पूर्णाहुति का दिवस सुहाया।जन जन का आभार जताया।

    जोगी बोलें जय महतारी।धान कटोरा तारनहारी।।

    चंपा देवी गौरी बाई।निरूपमा भी थी सह आई।

    प्रणिता पांडे सब जन नारी।भीड़ जुड़ी थी अतिशय भारी।।

    थे हजार से ऊँपर जन जन।पूर्णाहुति से खुश थे सब जन।

    श्रेष्ठ इतिहास यह था जानों।स्वर्णिम पल था सुंदर मानों।।

    मनुज यहाँ का छत्तीसगढ़िया।राज्य बना है सबसे बढ़िया।।

    नेता जन ने माथ झुकाया।संघर्षों से दिन यह आया।।

  • जलती धरती / भावना मोहन विधानी

    जलती धरती / भावना मोहन विधानी

    जलती धरती / भावना मोहन विधानी

    JALATI DHARATI


    वृक्ष होते हैं धरती का सुंदर गहना,
    हरियाली के रूप में धरा ने इसे पहना
    हरे भरे वृक्षों को काट दिया मनुष्य ने,
    मनुष्य की क्रूरता का क्या कहना?
    तेज गर्मी से जलती जा रही धरती,
    अंदर ही अंदर वह आहे हैं भरती,
    कौन सुनेगा अब पुकार उसकी
    मनुष्य जाति उसके लिए कुछ नहीं करती।
    पेड़ों को काट भवन बनाए जा रहे हैं,
    शहर धरती की सुंदरता को खा रहे हैं,
    आधुनिकरण से धरती बंजर हो गई,
    मनुष्य सारे चैन की नींद में सो रहे हैं।
    अभी वक्त है नींद से जाग जाओ सब,
    पेड़ लगाओ खुश हो जाएगा तुमसे रब
    धरती बंजर हो जाएगी तो पछताओगे
    अभी नहीं तो समय मिलेगा फिर कब
    जलती धरती को कुछ तो राहत दे दो,
    हरे भरे वृक्षों की उसको सौगात दे दो
    चारों ओर खुशहाली छा सी जाएगी,
    धरती का दामन खुशियों से भर दो।

    भावना मोहन विधानी
    अमरावती

  • जलती धरती/चन्दा डांगी

    जलती धरती/चन्दा डांगी

    जलती धरती/चन्दा डांगी

    JALATI DHARATI
    JALATI DHARATI

    बचपन मे हमने देखी
    हर पहाड़ी हरी भरी
    नज़र आता नही
    पत्थर कोई वहाँ
    कटते गये जब पेड़
    धरती होने लगी नग्न सिलसिला ये चलता रहा
    अब पत्थर नज़र आते
    पेड़ो का पता नहीं
    लाते थे हम सामान
    कपड़े की थैलियों मे
    अब पाॅलीथीन से
    ये धरती पटी पड़ी
    नल नहीं थे घरों मे
    पानी का मोल समझते थे
    घर घर लगे नलकूप
    कोंख धरती की सुखा डाली
    पेड़ है नही, अम्बर बरसता नही
    सुरज के ताप से जलती धरती हमारी ।

    चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर
    मंदसौर मध्यप्रदेश

  • जलती धरती /हरि प्रकाश गुप्ता सरल

    जलती धरती /हरि प्रकाश गुप्ता सरल

    जलती धरती /हरि प्रकाश गुप्ता सरल

    JALATI DHARATI
    JALATI DHARATI

    धरती जलती है तो जलने दीजिए।
    पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।
    भले ही जल जाए सभी कुछ यहां
    पर पर्यावरण की न चिंता कीजिए।
    कुछ तो रहम करो भविष्य के बारे में
    अपने लिए न सही आगे की सोचिए।।
    न रहेंगे जंगल और न रहेगी शीतलता
    हरियाली धरा में न दिख पाएगी।
    न कुछ फिर बचेगा धरा पर
    धरती मां भी कुछ न कर पाएगी।।
    सभी कुछ बर्बाद हो जाएगा
    बीमारियों का बोलबाला छा जाएगा।
    यहां से वहां तक धरा में अंधेरा ही अंधेरा हो जाएगा।।
    धरती जलती है तो जलने दीजिए।
    पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।
    धरती  जलने से  बचाव भाईयो
    सभल सको तो सभल जाओ।
    हम तो साथ तेरे न कबसे खड़े
    जरा तुम भी तो आगे मेरे साथ आओ।।
    सूर्य की किरणों की गर्मी को न सह पाएंगे।
    बिना मौत आए सभी मौत को गले लगाएंगे।।
    समझा रही प्यारी – प्यारी हरियाली युक्त हमारी  धरती माता ।
    पर समझ कहां किसी को  समझ किसी को भी क्यों नहीं आता।।
    जहां खाली जगह पाओ
    वहां वृक्ष अवश्य लगाओ।
    हरियाली धरती पर और हरे भरे जंगल हमारे।
    सभी को लगते कितने प्यारे – प्यारे।।
    जल भी होगा और स्वच्छ वातावरण भी होगा।
    स्वस्थ सभी रहेंगे न कोई रोगी होगा।।
    स्वच्छ हवाओं का झरोखा आता रहेगा।
    दिल अपना सुबह-शाम घूमने को कहेगा।।
    पार्कों और बागों की खूबसूरती बढ़ेगी।
    प्रकृति न जाने कितनी खूबसूरत दिखेगी।।
    फूल भी खिलेंगे और फल भी लगेगा ।
    खेतों में सभी के खूब अनाज उगेगा ।।
    धनवान और ऊर्जावान सभी हो जाएंगे।
    धरती भी जलने से  बच जाएगी।।
    नदियों का क्या जलयुक्त रहेंगी
    पहले की तरह बहती रहेंगी।।
    पर्वत हमारे सुंदरता बढ़ाएंगे।
    उन पर भी जब पेड़ उग आएंगे।।
    खाली खाली जंगल घने हो जाएंगे।
    जंगली जानवर खुश हो जाएंगे।।
    फिर न शिकार खोजने गांव और शहर
    जाएंगे।
    प्राणी भी उनके डर से मुक्त हो जाएंगे।।
    धरती जलती है तो जलने दीजिए।
    पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।


    इंजीनियर हरि प्रकाश गुप्ता सरल
    भिलाई छत्तीसगढ़