शून्य भेदभाव दिवस पर, हम एक हो जाएँ , पूरा विश्व एकजुट, सुबह के सूरज के नीचे। करते हैं आवाज़ बुलंद और स्पष्ट , नफ़रत को और न कहने के लिए,
भय को दूर करने के लिए।
हम सब एक जैसे हैं, त्वचा के नीचे खून से कोई जाति नहीं, कोई धर्म या रिश्तेदार नहीं। इंसान हैं हम सभी, जो पैदा होते हैं, प्यार करने के लिए , आनंद पाने के लिए ।
अब विभाजनकारी दीवारों के ख़िलाफ़ खड़े होंगे, वे बाधाएँ जो हमें अंदर से अलग रखती हैं। हम भेदभाव की ताकत की जंजीरें तोड़ देंगे, और न्याय पर प्रकाश डालेंगे , उज्ज्वल चमकेंगे ।
अपनी मतभेदों को स्वीकार करते हुए , विविधता की सुंदरता को अपनाएंगे। हम स्वतंत्र होंगे तभी मजबूत होंगे , आओ, हम वह बदलाव लाकर दिखाएँ ।
हर्षोल्लास हृदय के साथ आगे बढ़ें, दिलों में आशा और हवा में प्यार । इस दिन के लिए, हम सब एक होकर खड़े होंगे, पाने को शांति की एक दुनिया ,
वृक्ष होते हैं धरती का सुंदर गहना, हरियाली के रूप में धरा ने इसे पहना हरे भरे वृक्षों को काट दिया मनुष्य ने, मनुष्य की क्रूरता का क्या कहना? तेज गर्मी से जलती जा रही धरती, अंदर ही अंदर वह आहे हैं भरती, कौन सुनेगा अब पुकार उसकी मनुष्य जाति उसके लिए कुछ नहीं करती। पेड़ों को काट भवन बनाए जा रहे हैं, शहर धरती की सुंदरता को खा रहे हैं, आधुनिकरण से धरती बंजर हो गई, मनुष्य सारे चैन की नींद में सो रहे हैं। अभी वक्त है नींद से जाग जाओ सब, पेड़ लगाओ खुश हो जाएगा तुमसे रब धरती बंजर हो जाएगी तो पछताओगे अभी नहीं तो समय मिलेगा फिर कब जलती धरती को कुछ तो राहत दे दो, हरे भरे वृक्षों की उसको सौगात दे दो चारों ओर खुशहाली छा सी जाएगी, धरती का दामन खुशियों से भर दो।
बचपन मे हमने देखी हर पहाड़ी हरी भरी नज़र आता नही पत्थर कोई वहाँ कटते गये जब पेड़ धरती होने लगी नग्न सिलसिला ये चलता रहा अब पत्थर नज़र आते पेड़ो का पता नहीं लाते थे हम सामान कपड़े की थैलियों मे अब पाॅलीथीन से ये धरती पटी पड़ी नल नहीं थे घरों मे पानी का मोल समझते थे घर घर लगे नलकूप कोंख धरती की सुखा डाली पेड़ है नही, अम्बर बरसता नही सुरज के ताप से जलती धरती हमारी ।
धरती जलती है तो जलने दीजिए। पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।। भले ही जल जाए सभी कुछ यहां पर पर्यावरण की न चिंता कीजिए। कुछ तो रहम करो भविष्य के बारे में अपने लिए न सही आगे की सोचिए।। न रहेंगे जंगल और न रहेगी शीतलता हरियाली धरा में न दिख पाएगी। न कुछ फिर बचेगा धरा पर धरती मां भी कुछ न कर पाएगी।। सभी कुछ बर्बाद हो जाएगा बीमारियों का बोलबाला छा जाएगा। यहां से वहां तक धरा में अंधेरा ही अंधेरा हो जाएगा।। धरती जलती है तो जलने दीजिए। पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।। धरती जलने से बचाव भाईयो सभल सको तो सभल जाओ। हम तो साथ तेरे न कबसे खड़े जरा तुम भी तो आगे मेरे साथ आओ।। सूर्य की किरणों की गर्मी को न सह पाएंगे। बिना मौत आए सभी मौत को गले लगाएंगे।। समझा रही प्यारी – प्यारी हरियाली युक्त हमारी धरती माता । पर समझ कहां किसी को समझ किसी को भी क्यों नहीं आता।। जहां खाली जगह पाओ वहां वृक्ष अवश्य लगाओ। हरियाली धरती पर और हरे भरे जंगल हमारे। सभी को लगते कितने प्यारे – प्यारे।। जल भी होगा और स्वच्छ वातावरण भी होगा। स्वस्थ सभी रहेंगे न कोई रोगी होगा।। स्वच्छ हवाओं का झरोखा आता रहेगा। दिल अपना सुबह-शाम घूमने को कहेगा।। पार्कों और बागों की खूबसूरती बढ़ेगी। प्रकृति न जाने कितनी खूबसूरत दिखेगी।। फूल भी खिलेंगे और फल भी लगेगा । खेतों में सभी के खूब अनाज उगेगा ।। धनवान और ऊर्जावान सभी हो जाएंगे। धरती भी जलने से बच जाएगी।। नदियों का क्या जलयुक्त रहेंगी पहले की तरह बहती रहेंगी।। पर्वत हमारे सुंदरता बढ़ाएंगे। उन पर भी जब पेड़ उग आएंगे।। खाली खाली जंगल घने हो जाएंगे। जंगली जानवर खुश हो जाएंगे।। फिर न शिकार खोजने गांव और शहर जाएंगे। प्राणी भी उनके डर से मुक्त हो जाएंगे।। धरती जलती है तो जलने दीजिए। पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।