Author: कविता बहार

  • गीत-सूनी सूनी संध्या भोर पर कविता

    संध्या भोर पर कविता

    काली काली लगे चाँदनी
    चातक करता नवल प्रयोग।
    बदले बदले मानस लगते
    रिश्तों का रीता उपयोग।।

    हवा चुभे कंटक पथ चलते
    नीड़ों मे दम घुटता आज
    काँप रहा पीला रथ रवि का
    सिंहासन देता आवाज
    झोंपड़ियाँ हैं गीली गीली
    इमारतों में सिमटे लोग।
    बदले…………………।।

    गगन पथों को भूले नभचर,
    सागर में स्थिर है जलयान
    रेलों की सीटी सुनने को
    वृद्ध जनों के तरसे कान
    करे रोजड़े खेत सुरक्षा
    भेड़ करें उपवासी योग।
    बदले………………..।।

    हाट हाट पर उल्लू चीखे
    चमगादड़ के घर घर शोर
    हरीतिमा भी हुई अभागिन
    सूनी सूनी संध्या भोर
    प्राकृत का संकोच बढ़ा है
    नीरवता का शुभ संयोग।
    बदले…………………।।

    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
    बौहरा-भवन सिकंदरा,३०३३२६

  • माता के नवराते पर कुंडलियाँ

    नवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है। नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। माता पर कविता बहार की छोटी सी सुन्दर कुंडलियाँ –

    आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी माँ दुर्गा पूजा Navami Maa Durga Puja from Ashwin Shukla Pratipada
    आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी माँ दुर्गा पूजा Navami Maa Durga Puja from Ashwin Shukla Pratipada

    माता के नवराते पर कुंडलियाँ

    माँ शक्ति की उपासना , होते है नवरात।
    मात भवानी-भक्ति में , करते हैं जगरात।।
    करते हैं जगरात , कृपा कर मात भवानी।
    होती जय जयकार , सुनो हे माता रानी।।
    कहता कवि करजोरि,करें सब माँ कीभक्ति।
    करो सदा उपकार, दयामयी हे माँ शक्ति।।1।।

    माता है ममतामयी , करती भव से पार।
    भक्तों पर करती कृपा,करे असुर संहार।।
    करे असुर संहार , माता अपनी शक्ति से।
    होती सदा प्रसन्न,माता सच्ची भक्ति से।।
    कहता कवि नवनीत,माँ की कृपा वो पाता।
    करता मन से याद,सुने सबउसकी माता।।2।।

    विषय-ब्रह्मचारिणी
    विधा-कुंडलियाँ

    ma-durga
    मां दुर्गा

    हे मात ब्रह्मचारिणी , संकट से कर पार।
    रूप दूसरा शक्ति का ,कर सबका उद्धार।।
    कर सबका उद्धार , मिट जाय सब बाधाएँ।
    रोग शोक हो दूर , संकट सभी मिट जाएँ।।
    कहता कवि करजोरि,माँउज्ज्वल तेरा गात।
    सभी रहें खुशहाल , विनय सुनो हे मात।।1।।


    माता है ममतामयी , करता है जो ध्यान।
    तीनो ताप निवारती , करे दुष्ट संधान।।
    करे दुष्ट संधान , है माता शक्तिशाली।
    लिये कमंडलु हाथ, मात हे शेरावाली।।
    कहता कवि नवनीत,माँ की शरण जोआता।
    देती भव से मुक्ति , शक्ति स्वरूपा माता।।2।।

    विषय-चन्द्रघंटा
    विधा-कुंडलियाँ

    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri
    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri

    न्यारा ही ये रूप है , चन्द्रघंट है नाम।
    रूप तीसरा शक्ति का,लोकोत्तरअभिराम।।
    लोकोत्तर अभिराम,दसभुज शस्त्र ये धारे।
    चन्द्रघंट है भाल , माता दुष्ट संहारे।।
    कहता कवि करजोरि,माँ कोभक्त है प्यारा।
    करती है भयमुक्त, माँ का रूप है न्यारा।।1।।

    करती है कल्याण माँ , रूप सुवर्ण समान।
    दुखभंजन सबका करे ,देती है वरदान।।
    देती है वरदान , हे शिव शंकर भामिनी।
    कर कष्टों से मुक्त, माँ भुक्ति मुक्तिदायिनी।।
    कहता कवि नवनीत,सभी की झोलीभरती।
    करो साधना मात,सबको भव पार करती।।2।।

    माँ कूष्मांडा(कुंडलियाँ)

    आदिशक्ति प्रभा युक्ता , चौथा दुर्गा रूप।
    माँ कूष्मांडा नाम है, इनकी शक्ति अनूप।।
    इनकी शक्ति अनूप , मात है बड़ी निराली।
    अष्ट भुजा संयुक्त है , मात है शेरावाली।।
    कहताकवि करजोरि,सब करेंअम्ब कीभक्ति।
    दूर करो सब रोग , हे माता आद्या शक्ति।।1।।

    धारे कर में अमृत घट ,पद्म धनुष अरु बाण।
    गदा कमंडलु चक्र है , करते भय से त्राण।।
    भय से करते त्राण , देते हैं आरोग्यता।
    मिटे सब आधि व्याधि , दूर हो जाय अज्ञता।।
    कहता कवि नवनीत , मात सब कष्ट निवारे।
    अष्टम भुज में मात,सिद्धिअरु निधि को धारे।।2।।

    navdurga
    navdurga

    स्कंदमाता(कुंडलियाँ)

    मात भवानी शैलजा , पंचम दुर्गा रूप।
    कार्तिकेय की मात है , अद्भुत और अनूप।।
    अद्भुत और अनूप , रूप है सबको भाता।
    रखती अंक स्कन्द , कहलाती स्कंदमाता।।
    कहता कवि करजोरि,माँ करेशक्ति बरसात।
    रोग शोक सब दूर हो , हे गौर भवानी मात।।1।।

    माता मुक्ति प्रदायिनी , ममता का भंडार ।
    शुभ्रवर्णा चतुर्भुजा , करे दुष्ट संहार।।
    करे दुष्ट संहार , माँ है विद्यादायिनी।
    पूजे माँ भक्त वृन्द , अम्ब शांति प्रदायिनी।।
    कहत नवल करजोरि,शरण जो माँ कीआता।
    करे कष्ट से पार , यशस्विनी शक्ति माता।।2।।

    ©डॉ एन के सेठी

  • जीत पर कविता

    जीत पर कविता

    काल चाल कितनी भी खेले,
    आखिर होगी जीत मनुज की
    इतिहास लिखित पन्ने पलटो,
    हार हुई है सदा दनुज की।।

    विश्व पटल पर काल चक्र ने,
    वक्र तेग जब भी दिखलाया।
    प्रति उत्तर में तब तब मानव,
    और निखर नव उर्जा लाया।
    बहुत डराये सदा यामिनी,
    हुई रोशनी अरुणानुज की।
    काल चाल कितनी भी खेले,
    आखिर,………………….।।

    त्रेता में तम बहुत बढा जब,
    राक्षस माया बहु विस्तारी।
    मानव राम चले बन प्रहरी,
    राक्षस हीन किये भू सारी।
    मेघनाथ ने खूब छकाया,
    जीत हुई पर रामानुज की।
    काल……….. …. ,…,…।।

    द्वापर कंश बना अन्यायी,
    अंत हुआ आखिर तो उसका।
    कौरव वंश महा बलशाली,
    परचम लहराता था जिसका।
    यदु कुल की भव सिंह दहाड़े,
    जीत हुई पर शेषानुज की।
    काल……. ….. …. ………।।

    महा सिकंदर यवन लुटेरे,
    अफगानी गजनी अरबी तम।
    मद मंगोल मुगल खिलजी के,
    अंग्रेजों का जगती परचम।
    खूब सहा इस पावन रज ने,
    जीत हुई पर भारतभुज की।
    काल……………. ……….।।

    नाग कालिया असुर शक्तियाँ,
    प्लेग पोलियो टीबी चेचक।
    मरी बुखार कर्क बीमारी,
    नाथे हमने सारे अनथक।
    कितना ही उत्पात मचाया,
    जीत हुई पर मनुजानुज की।
    काल…………. ….. ……..।।

    आतंक सभी घुटने टेकें,
    संघर्षों के हम अवतारी।
    मात भारती की सेवा में,
    मेटें विपदा भू की सारी।
    खूब लड़े हैं खूब लडेंगें,
    जीत रहेगी मानस भुज की।
    काल…….. …… ………..।।

    आज मची है विकट तबाही,
    विश्व प्रताड़ित भी है सारा।
    हे विषाणु अब शरण खोजले,
    आने वाला समय हमारा।
    कुछ खो कर मनुजत्व बचाये,
    विजयी तासीर जरायुज की।
    काल…….. ……………….।।
    . ???
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
    बौहरा – भवन ३०३३२६
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान, ३०३३२६
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  • महामारी पर कविता

    महामारी पर कविता

    कोरोना से जन जीवन हताश है।
    खिले चेहरे आज क्यों उदास हैं।
    मन में भरो हमारे माता विश्वास है।
    विपदा की घड़ी में इंसान क्यों निराश है।
    माँ दुर्गा भवानी विपदा से हमको संभालो।
    कैसी है ये मुश्किल इससे हमको निकालो।
    कर जोड़ विनती है माँ दुर्गा भवानी।
    इस महामारी से दुनिया को बचा लो।

    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री

  • क्रांति का सागर पर लेख

    क्रांति का सागर पर लेख

    1947, में फिर से तिरंगा लहराया था, हमने फिरंगियों को भारत से मार भगाया था। क्रांति वो सागर जो हर व्यक्ति में बह रहा था। ये उस समय की बात है, जब बच्चा बच्चा आजादी आजादी कह रहा था। मै शीश जूकाता हूं, उनके लिए जिन्होंने शीश कटवाया था, भारत माता के लिए। आजादी की ऐसी होड़ जो हर व्यक्ति में दौड़ रही थी, ये मत भूलो की उन्होंने ही नए भारत की नीम रखी थी। जलियावाले बाघ की तो कहीं सुनी कहानी थी, हजारों बलिदानों की वो एक मात्र बड़ी कहानी थी। क्रांति का वो सागर जो धीरे धीरे बड रहा था, फिरंगियों को क्या पता वो उनके लिए ही उमड़ रहा था।
    Writer-Abhishek Kumar Sharma