शब्दो पर दोहे
१
सागर मंथन जब हुआ, चौदह निकले रत्न।
*अन्वेषण* नित कर रहे, सतत समस्त प्रयत्न।।
२
*सम्प्रेषण* होता रहे, भव भाषा भू ज्ञान।
विश्व राष्ट्र परिकल्पना, हो साकार सुजान।।
३
अपनी रही विशेषता, सब जन के परि त्राण।
बना *विशेषण* हिन्द यह, सागर हिन्द प्रमाण।४
*अन्वेषण* करिए सतत, *सम्प्रेषण* कर ज्ञान।
बने *विशेषण* मानवी, विश्व राज्य सम्मान।।
५
खिलते फूल बसंत जब, करते *अलि* गुंजार।
कोयल कुहुके हे सजन, विरहा चुभे बहार।।
६
करना है *आक्रोश* अब, सैनिक सुनो जवान।
सीमा पर आतंक का, बचे न नाम निशान।।
७
करिये पंथ *प्रशस्त* तुम, पढ़िये बन विद्वान।
देश धरा हित कर्म कर, कलम वीर गुणवान।।
७
*प्रांजल* पथ कश्मीर हो, अवसर सर्व समान।
जाति धर्म आतंक मिट, लागू नया विधान।।
८
छंद लिखें *नवनीत* सम, भाषा मधुर सुजान।
हिन्दी हिन्दुस्तान अरु, काव्य कलम अरमान।।
९
पूछी कठिन *प्रहेलिका*, समझ न पाए छात्र।
उतना ज्ञान बखानिये, समुचित जितना पात्र।।
१०
नेता वर *वक्ता* बने , करते भाषण नित्य।
जनता को बहका रहे, चाह मान आदित्य।।
११
भोर काल में फैलता, नित भू पर *आलोक।*
आशा रखिए हे मनुज, व्यर्थ करो मत शोक।।
१२
बनती कली *प्रसून* जब, भ्रमर चाह मकरंद।
आते अवसर स्वार्थ सब, समझ मनुज मतिमंद।।
१३
*पहल* करे आतंक कर, छली पड़ोसी पाक।
शांति अहिंसा छोड़ अब, शक्ति दिखाएँ धाक।।
१४
*आदि* सृष्टि विधि ने रचे, जीवन विविध प्रकार।
मनु सतरूपा मनुज तन, संतति हेतु प्रसार।।
१५
वृक्ष धरा परिधान सम, सजते ज्यों शृंगार।
पाँच वृक्ष *वट* के लगे, पंचवटी। समहार।।
१६
*समझ शब्द सब संपदा, जोड़ लिखे बहु छंद।*
*शर्मा बाबू लाल मन , चाह मिटे भव द्वंद।।*
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✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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