Author: कविता बहार

  • अपराधी इंसान पर कविता- R R Sahu

    अपराधी इंसान पर कविता

    सभी चाहते प्यार हैं,राह मगर हैं भिन्न।
    एक झपटकर,दूसरा तप करके अविछिन्न।।

    आशय चाल-चरित्र का,हमने माना रूढ़।
    इसीलिए हम हो गए,किं कर्तव्य विमूढ़।।

    स्वाभाविक गुण-दोष से,बना हुआ इंसान।
    वही आग दीपक कहीं,फूँके कहीं मकान।।

    जन्मजात होता नहीं,अपराधी इंसान।
    हालातों से देवता या बनता हैवान।।

    भय से ही संभव नहीं,हम कर सकें सुधार।
    होता है धिक्कार से,अधिक प्रभावी प्यार।।

    प्रेम मूल कर्तव्य है,वही मूल अधिकार।
    नहीं अगर सद्भावना,संविधान बेकार।।

    भूले-भटकों को मिले,अपनेपन की राह।
    ईश्वर धरती को सदा,देना प्यार पनाह।

    ————-R.R.Sahu
  • तुम धरा की धुरी -एल आर सेजु थोब ‘प्रिंस’

    तुम धरा की धुरी

    8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 March International Women's Day
    8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 March International Women’s Day

    नारी तुम धरा की धुरी
    तुम बिन सृष्टि अधूरी
    मूरत तुम नेह स्नेह, वात्सल्य
    तुम ममतामयी, तुम करुणानिधि ।

    माँ, बहन, बेटी और पत्नी
    तुम हर रूप की अवतारी
    चली हर कदम पुरुष के साथ
    बन जीवन रथ की धुरी ।

    त्याग व प्रेम की सूरत सी
    तुम मूरत हो प्यारी
    तुम से शुरू तुम पर ही खत्म
    तुम हो इस भू पर बगिया क्वारी ।

    तुम छली गई बार बार हर बार
    दबी तुम ठरके की ठेकेदारी से
    जब चाहे अस्मिता कुचलते रहे
    तुल्य समझ स्व भोग की वस्तु से ।

    वेदना व पीड़ा सहकर भी
    दर्द आँचक में समेटकर
    चली तुम पुरुष के संग संग
    पद चिन्हों को तराश कर ।

    अजीब विडंबना हैं हे नारी
    तुम भव भव से हारी
    एक हाथ पूजें धन लक्ष्मी को
    दूसरा हाथ गृहलक्ष्मी पर भारी ।

    करते रहे तुम कन्यापूजन
    कोख़ की कन्या का अंत भारी
    लूटते रहे अस्मत बालिकाओ की
    नभ पर गूंजी चित्कार दर्द भरी ।

    कोई नहीं समझा पीड़ परायी
    नारी तेरी बस यही हैं कहानी
    जीवन की विभीषिका में
    युगों से जौहर तुम रचाती रही ।

    नारी तुम नारायणी, तुम ही हो दूर्गा
    चलो तुम करके सिंह सवारी
    वध करो तुम महिषासुर का
    एक बार बन जाओ माँ काली ।

    वार करो तुम प्रहार करो
    अबला से बन जाओ सबला
    बचाओ अपने आत्म सम्मान को
    सर्वनाश कर दो उन जालिमों का ।।

    ✍एल आर सेजु थोब ‘प्रिंस’
  • तदबीर पर कविता – RR Sahu

    तदबीर पर कविता

    रो चुके हालात पे,मुस्कान की तदबीर सोचो,
    रूह को जकड़ी हुई है कौन सी जंजीर सोचो।

    मुद्दतें गुजरीं अँधेरों को मुसलसल कोसने में,
    रौशनी की अब चिरागों में नई तकदीर सोचो।

    जुल्मतों ने हर कदम पे जंग के अंदाज बदले,
    तुम फतह के वास्ते क्या हो नई शमसीर सोचो।

    कामयाबी के लिए हैं कौन से रस्ते मुनासिब,
    कारवाँ की,मंजिलों की साफ हो तस्वीर,सोचो।

    ————-R.R.Sahu
  • कलयुग के पापी -राजेश पान्डेय वत्स

    कलयुग के पापी

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    भूखी नजर कलयुग के पापी
    असंख्य आँखों में आँसू ले आई!

    लालची नजर *सूर्पनखा* की
    इतिहास में नाक कटा आई!!

    मैली नजर *जयंत काग* के
    नयन एक ही बच पाई!!!

    बिना नजर के *सूरदास* को
    *कृष्ण-लीला* पड़ी दिखाई!!

    नजर में श्रद्धा *मीरा* भरकर
    तभी गले विष उतार पाई!!

    तीसरी नजर *शिवशंम्भु* की
    *कामदेव* को पड़ी न दिखाई!!

    तकती आँखें *शबरी* रखकर
    युगों युगों तक नजर बिछाई!!

    खुली नजर *अहिल्या* की
    जब धूलि *राम* के पग पाई!!

    नजर प्रेम की *राधा* रखी
    संग नाम *कृष्णा* जोड़ लाई!!

    रखिये नजर *सुमित्रानंदन* सी,
    जो *सीता* के सिर्फ पायल पहचान पाई!

    – – राजेश पान्डेय *वत्स*

  • रजनी पर कविता- डा. नीलम की कविता

    रजनी पर कविता

    तारा- जड़ित ओढ़े ओढ़नी
    धीरे धीरे चाँदनी की नदी में

    ऐसे उतर रही
    जैसे कोई सद्य ब्याहता
    ओढ़ चुनरिया सजना की
    साजन की गलियों में
    धीमे धीमे पग रखती
    ससुराल की दहलीज़ चली

    खामोशी में झिंगूरों की

    झिमिर झिमिर का संगीत
    कानों में यूं रस घोले
    जैसे दुल्हनिया के बिछुए-
    पायल के घूंघर रुनझुन-
    रुनझुन पिया के हिय में
    प्रेम- रस घोले ।

    है सम्मोहिनी सारा आलम
    ज्यूं मधुयामिनी की रातों में
    दो नयन इक दूजे में खोये- खोये

    मदहोश नशे में चूर हुए।

    डा. नीलम