बेटी की व्यथा पर कविता
करूण रस –
अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !
सूर – कबीरा के “धरा” में,देखो “बेटी” जुल्म सह रही !!
यहाँ – वहाँ, जाऊँ – कहाँ, पग – पग में बैठा दानव है !
किसको मैं असुर कहूँ” मां”, किसको मानूंगी मानव है !!
इंसानियत अब नजर न आता , हैवानियत “बेटी” सह रही !
अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!
अब नहीं प्रेमभाव नयन में,बहती रगों में क्रूरता है !
हैवान विचरण करे जहाँ में, दरिंदे पहरा करता है !!
इन शैतानों की शिकार “बेटी”, देखो कैसे सह रही !
अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!
न भेजो मुझे इस “मही”में, मां कोख में मुझे रहने दो !
न सह सकूँ दुख कलिपन में, “भू”बंजर “बेटी” बिना रहने दो !!
सह न सकूँ “मां” अब तेरी आंसू , अरजी “बेटी” ये कह रही !
अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!
दूजराम साहू
निवास -भरदाकला
तहसील- खैरागढ़
जिला- राजनांदगांव (छ.ग.)