Author: कविता बहार

  • सायली कैसे लिखें (How to write SAYLI)

    सायली कैसे लिखें (How to write SAYLI)

    सायली रचना विधान : सायली कैसे लिखें

    हाइकु
    hindi sahityik class || हिंदी साहित्यिक कक्षा
    • सायली एक पाँच पंक्तियों और नौ शब्दों वाली कविता है |
    • मराठी कवि विशाल इंगळे ने इस विधा को विकसित किया हैं बहुत ही कम वक्त में यह विधा मराठी काव्यजगत में लोकप्रिय हुई और कई अन्य कवियों ने भी इस तरह कि रचनायें रची  ।
    •  पहली पंक्ती में एक शब्द
    •  दुसरी पंक्ती में दो शब्द
    • तीसरी पंक्ती में तीन शब्द
    • चौथी पंक्ती में दो शब्द
    •  पाँचवी पंक्ती में एक शब्द और
    • कविता आशययुक्त हो |
    • इस तरह से सिर्फ नौ शब्दों में रचित पूर्ण कविता को सायली कहा जाता हैं |
    • यह शब्द आधारित होने के कारण अपनी तरह कि एकमेव और अनोखी विधा है |
    • हिंदी में इस तरह कि रचनायें सर्वप्रथम शिरीष देशमुख की कविताओं में नजर आती हैं |

    उदाहरण*=

    इश्क

    मिटा गया

    बनी बनायी हस्ती

    बिखर गया

    आशियाँ..

    *© शिरीष देशमुख*

    तुझे

    याद नहीं

    मैं वहीं बिखरा

    छोडा जहां

    तुने.. 

    © शिरीष देशमुख

    • सायली विधा में आप देखेगें कि हाइकु की भांती हर लाइन अपने आप में सम्पुर्ण है | 
    • बातचीत अथवा दुसरी विधा की कविताओं मे जैसे लाइन होती है उस तरह से वाक्य को तोड़ कर लाइन बना देने से ही सायली नहीं होती |  
  • महंगाई -विनोद सिल्ला

     महंगाई

    महंगी  दालें  क्यों  रोज  रुलाती।
    सब्जी  दूर  खड़ी  मुंह  चढाती।।

    अब सलाद अय्याशी कहलाता है,
    महंगाई  में  टमाटर  नहीं भाता है,
    मिर्ची  बिन   खाए  मुंह  जलाती।।

    मिट्ठे फल ख्वाबों में  ही  आते  हैं,
    आमजन इन्हें नहीं खरीद पाते हैं,
    खरीदें  तो  नानी  याद  है आती।।

    कङवे करेलों के सब दर्शन करलो,
    आम अनार के फोटो सामने धरलो,
    सुनके  कीमत, भूख भाग जाती।।

    कैसे   होए   गरीबों   का  गुजारा,
    पेट  पर   पट्टी  बांधना  ही  चारा,
    पतीली  चुल्हे  पर  न  चढ पाती।।

    सिल्ला’ से मिर्च मसाले विनोद करें,
    एक आध दिन नहीं, रोज रोज करें,
    खरददारी      औकात     बताती।।

    विनोद सिल्ला, हरियाणा,

     इस पोस्ट को like करें (function(d,e,s){if(d.getElementById(“likebtn_wjs”))return;a=d.createElement(e);m=d.getElementsByTagName(e)[0];a.async=1;a.id=”likebtn_wjs”;a.src=s;m.parentNode.insertBefore(a, m)})(document,”script”,”//w.likebtn.com/js/w/widget.js”);
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • चन्द्रयान 2 पर कविता -डी.राज सेठिया

    चन्द्रयान 2 पर कविता

    काबिलियत है,पर मार्ग कठिन बहुत है।
    हासिल कुछ नही ,पर पाया बहुत है।

    हाँ नींद भी बेची थी,पर सकून बहुत पाया था।
    हाँ चैन भी बेची थी,पर गर्व बहुत पाया था।।

    दुआएं थी सवा सौ करोड़ लोगों की,वह क्या कम था।

    इसरो मैं भी भावुक हुँ,क्योंकि मैंने भी दुआ मांगा था।।

    जीवन के पथपर अल्पविराम तो आते हैं,पर पूर्ण विराम नहीँ।
    अंतरिक्ष के पटल पर नाम जरूर होगा,यह कोई संसय नहीँ।।

    प्रयास जरूर रंग लाएगी,तू हिम्मत मत हार।
    विक्रम रुका है इसरो नहीं,तू हौसला मत हार।

    डी.राज सेठिया
    कोंडागांव(छ.ग.)
    8770278506
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • विघ्न हरो गणराज-सुधा शर्मा

    विघ्न हरो गणराज

    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi
    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi

    हे गौरी नंदन हे गणपति,प्रथम पूज्य  महराज।

    कृपा करो हे नाथ हमारे,विघ्न हरें गण राज।।

    घना तिमिर है छाया जग में, भटक रहा इंसान।  

    भूल गया जीवन मूल्यों को ,बना हुआ शैतान।।

     हे दुख भँजन आनंददाता,करिए  पूरी आस।

    रोग दोष सकल दूर करके,हरिए क्लेशविषाद ।।

    प्रथम पूजनीय हो प्रभू जी,पूजे सब संसार। 

    शुद्धि बुद्धि करिए गणराजा,हरिए सभी विकार।।

    दर्प दलन किया था आपने,देकर चंद्रदेव को शाप।

    कला हीन होकर तब भगवन,मिला विकट  संताप।

    काम क्रोध मद लोभ डूबकर,भूले जो सदचाह।

    पथ प्रदर्शक बनें बुद्धि प्रवर,दो विवेक की राह।।

    विनती इतनी है  गणनायक,हो शान्ति परिवेश। 

    मानवता सदभावना खिले,सदा सुखी हो देश।।

     सुधा शर्मा राजिम छत्तीसगढ़

  • वे है मेरे गुरु जी-रोहित शर्मा ‘राही’

    भारत के गुरुकुल, परम्परा के प्रति समर्पित रहे हैं। वशिष्ठ, संदीपनि, धौम्य आदि के गुरुकुलों से राम, कृष्ण, सुदामा जैसे शिष्य देश को मिले।

    डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

    गुरु शिष्य

    वे है मेरे गुरु जी

    अंधकार की गुफा बड़ी थी,
    जिससे मुझको बाहर ले आए ।  
       काले काले श्यामपट्ट पर, 
    नूतन श्वेत अक्षर सिखाये। 
    अपना पराया अच्छे बुरों का,
    सदैव ये मुझे भेद बताए।
    सबसे अच्छे सबसे सच्चे,
    वे है मेरे गुरु जी…….

    बात बड़ी बड़ी,
    छोटी करके ।
    ख्वाब दिखाएं ,
    बड़े होने के ।
    साथ मेरे खेले कूदे ,
    मुर्दों में भी जान फूंके ।
    जिनका अक्षर अक्षर ब्रह्म था,
    वे है मेरे गुरुजी ………

    मेरे दुख में  वे रोते थे,
    सफलताओं की कुंजी बोते थे।
    आगे बढ़ाने  मेरी सीढ़ी बनकर,
    नित नवीन ज्ञान देते थे ।
    जिनकी बदौलत आज पटल पर,
    काव्य नवीन रच रहा हूं ।
    अखिल विश्व में जीवित ईश्वर,
    वें है मेरे गुरुजी ………

    रोहित शर्मा ‘राही’
    भंवरपुर, जिला-महासमुंद
    छत्तीसगढ़
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद