Author: कविता बहार

  • अब तरूणों को आना होगा

    अब तरूणों को आना होगा

    अब तरूणों को आना होगा

    राष्ट्रवाद का अलख जगाने,अब तरूणों को आना होगा
    भारत भू  की  रक्षा खातिर, रक्त बहाने आना होगा।

    आतंकी असुरों को हम, यूँ कब तक ऐसे झेलेंगे ….
    भस्मासुर सा नृत्य करा,उनका दिल दहलाना होगा।

    सोए देश के वीरों जागो,कुछ पहचानो अपने को।
    आत्म शक्ति जो खोया तुमने, फिर से उसे जगाना होगा।

    नव दधीचि का वज्र बना,कर प्रहार तू  सीने मे।आतंको के आतंक  से,धरती को मुक्त कराना होगा।

    नील गगन की शान तिरंगा,ये कभी न झुकने पाए।
    माँ का वैभव अमर बना, अपना फर्ज चुकाना होगा।

                    रविबाला ठाकुर”सुधा”
                          स./लोहारा

  • नया संसार बसायेंगे

    नया संसार बसायेंगे

    नया संसार बसायेंगे

    आओ यह संकल्प करें
    नया संसार बसायेंगे ।
    स्वर्ग धरती  पर लायेंगे ।

    जाति धर्म का भेद मिटाकर
    एकता  का रंग  भरें।
    हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
    भाई भाई संग  फिरें ।
    मंदिर मस्जिद गुरू द्वारे पर
    अलख जगायेंगे ।
    नया संसार बसायेंगे
    स्वर्ग धरती पर लायेंगे ।

    नारी का सम्मान हो जग में
    कोख में बेटी न मरे ।
    आसमान को छूले बेटियाँ
    अब नहीं वो किसी से ड़रे ।
    आओ यह संकल्प करें
    बेटियों को बचायेंगे ।
    नया संसार बसायेंगे
    स्वर्ग धरती पर लायेंगे ।

    दीन दुखी को सबल बनायें
    और सहारा बन जायें ।
    बेबस कोई अब न रोये
    कुटिया में भी दीप जलायें
    यह संकल्प है नया साल में
    रोटी भी मिल बाँट के खायेंगे ।
    नया संसार बसायेंगे
    स्वर्ग धरती पर लायेंगे।
    स्वर्ग धरती पर लायेंगे ।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम (छ॰ग

  • अरुणोदय

    अरुणोदय

    अरुणोदय

    प्रतिदिन
    अरुणोदय
    हममें जगाती है
    स्फूर्ति
    भोर का समय
    सुबह की लालिमा
    सूर्य की किरणें
    पृथ्वी पर आती है
    सुखद एहसास
    होता है वह
    ठंड के मौसम में
    इंतजार होता है
    सभी को
    अरुणोदय का
    पक्षी सारे चहचहाकर
    अभिनंदन करते हैं
    वहीं गायें रंभा कर
    इंसान,
    सूर्य नमस्कार से
    अपने दिन की शुरूआत
    करते हैं
    सुबह खूबसूरत हो
    तो कहते हैं
    दिन अच्छा
    बीतेगा •••!

    यहाँ जाने कितने
    ऐसे लोग भी है
    जिन्होंने अरुणोदय
    कब से नहीं देखा
    क्योंकि दिन चढ़ने
    के बाद उनकी
    सुबह होती है ।
    वो इतनी सुन्दर सुबह
    को खो देते हैं ••••!

    सपना देखना है
    तो रात्रि में देखो
    सुबह तो इन सपनों
    को पूरा करने में
    लगाना है
    और अपने कर्मो से
    सफलता पाना है
    सुनहरे अक्षरों में
    इतिहास में
    नाम हो अपना
    कर्म बना लो
    अपने सपनों को सपना ••••!

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

  • ज़िंदगी की राह/ निमाई प्रधान’क्षितिज

    ज़िंदगी की राह/ निमाई प्रधान’क्षितिज

    ज़िंदगी की राह/ निमाई प्रधान’क्षितिज
    ~~~~•●•~~~~

    ज़िंदगी की राह..
    जो तुम चल पड़े हो !
    देखना..झंझावतों की
    भीड़ होगी ,
    आशियां टूटेगा..
    हरदम..हर गली में..
    फिर बसेरे की ज़रूरत-
    नीड़ होगी !!

    ज़िंदगी की राह..
    जो तुम चल पड़े हो!!

    संसृति का है नियम..
    ओ रे राही!
    चलते रहना है..
    आगे बढ़ते रहना ,
    अपने आगे आये-
    हर रुकावटों को ..
    मोड़ दो..
    या फिर-
    मुड़ के बह निकलना !!

    ज़िंदगी की राह..
    जो तुम चल पड़े हो!!

    स्वयं से ऊपर उठ गया जो..
    है मनु वो..!
    खुद में सिमटा रह गया..
    इंसां नहीं है !!
    समष्टि-हित गर..
    कर न पाये कुछ तो..
    ये इंसानियत की किंचित् भी
    निशां नहीं है!!

    ज़िंदगी की राह..
    जो तुम चल पड़े हो!!

    *-@निमाई प्रधान’क्षितिज’*
         रायगढ़,छत्तीसगढ़
       मोबाइल नं.7804048925