कल्पना शक्ति पर कविता

कल्पना शक्ति बनाम मन की अभिव्यक्ति! भावावेश में आकर,कल्पनाओं के देश में जाकर,अक्सर बहक जाता हूं, खुद को पंछी सा समझ कर,उड़ता हूं, उन्मुक्त गगन में,खुशी से, चहक जाता हूं!यह मेरे, मन की, भड़ास हैया कि छिछोरा पागलपन,क्या कुछ है, मुझे नहीं पता,लगता है जैसे कि, कच्चा कोयला हूं,जब तब, अंगार लगती है तो,जलता है … Read more

नव वर्ष का उत्सव !

*नव वर्ष का उत्सव !* मैंने नव वर्ष का उत्सवआज ये नही मनाया है……….!किसे मनाऊँ,किसे नहीकुछ समझ न आया है …..!! चाहे ये विक्रम संवत हो या जो ग्रेगोरियन रंगाया हैचाहे अपना शक संवत होया हिजरी ने जो नचाया है !..मैंने.. गर दिन खराब चल रहा तोदिन को दीन क्यों बताया है,जब अपना जेब गरम … Read more

चमचा गिरि नही करूंगा

चमचा गिरि नही करूंगा जो लिखुंगा सत्य लिखुंगाचमचा गिरी नही करूंगा।कवि हूं कविता लिखुंगाराजनेता से नहीं बिकुंगा।। चापलुसी चमचा गिरी तोकिसी कवि का धर्म नहीं।अत्याचार मै नहीं सहूंगा।जो लिखुंगा सत्य लिखुंगा । राज नेता से नहीं बिकुंगा ।कवि हूं मैं, कविता लिखुंगा।। कवि धर्म कभी कहता नहींअतिशयोक्ति काब्य लिखुंगा।जो सच्चाई है वहीं लिखुंगा।राजनेता से नहीं … Read more

गंगा की पुकार

गंगा की पुकार गंगा घलो रोवत हे,देख पापी अत्याचार।रिस्तेदारी नइये ठिकाना,बढ़गे ब्यभीचार।। कलयुग ऊपर दोष मढत हे,खुद करम में नहीं ठिकाना।कइसे करही का करही एमनओ नरक बर करही रवाना।। स्वार्थ के डगर अब भारी होगेअनर्थ होत हे प्यार।प्यार अंदर अब नफरत हवयबढे हवय अत्याचार।। प्यार नाम अब धोखा हवे सुन लौ जी संत समाज।हृदय काकरो … Read more

तृषित है मन सबका!

तृषित है मन सबका!***शंकर ने, विष पान किया,तब नील कण्ठ कहलाए,व्याघ्र चर्म का, वसन पहनकर,मंद मंद मुसकाए!विष धर को, गलहार बनाया, नंदी पीठ बिरजाए,चंद्र शीश पर रखकर, शिव जी,चंद्रमौली कहलाए!पर्वत पर आशियां बनाया, डमरू हाथ बजाए,कंद मूल खाकर ही जिसने, ताण्डव नृत्य सिखाए!प्रतीकात्मक ही इसे मानकर,स्तुति करते आए,मन है तृषित, आज हम सबका,दुनिया में भरमाए!कहे … Read more